सुंदर छवि पा,
नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?
मधुपों की प्रियतमा,
जग में जो अनुपमा,
शशि की किरणों की बाँहें थाम
कमलिनी निशा में खिलती है –
सुंदर छवि पा,
नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?
सागर की उत्ताल तरंगें,
चट्टानों से टकराती लहरें,
होती हैं क्यों छिन्न-भिन्न !
क्या है यह नज़रों का भ्रम
क्षितिज की मृगतृष्णा लिये,
धरा गगन को छूती है –
सुंदर छवि पा,
नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?
क्यों इच्छाओं का अंत नहीं ?
क्यों तृष्णा यह बढ़ती है ?
क्यों दूर सितारा जगता है,
जब सारी धरती सोती है –
सुंदर छवि पा,
नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?
( अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर – मौलिक एवम अप्रकाशित रचना )
Comment
स्वभाव से सदय और द्याद्र है नारी , भाव प्रधान जीवन इनका अंग है , मौन इनकी अभिव्यक्ति है और अतिरेक में अश्रु ही शब्द बनते हैं और इसलिए शायद रोती है -नारी . प्रश्न करती हुई बढती यह कविता अनेक प्रश्नों का स्वेम में उत्तर है . सुंदर कविता प्रस्तुति , कुन्तिजी !
मेरे विचार से नारी के रोने का कारण हम पुरुष वर्ग हैं, जिसने आज तक नारी को उसके समानता का अधिकार नहीं दिया!
क्यों इच्छाओं का अंत नहीं ?
क्यों तृष्णा यह बढ़ती है ?
क्यों दूर सितारा जगता है,
जब सारी धरती सोती है –
सुंदर छवि पा,
नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?
aadarneeya kuntee jee aapkee peeda wajib hai.
आदरणीया कुन्ती जी, आपकी रचना के मूल प्रश्न का उत्तर यह रचना स्वयं देती है.
क्यों इच्छाओं का अंत नहीं ?
क्यों तृष्णा यह बढ़ती है ?
क्यों दूर सितारा जगता है,
जब सारी धरती सोती है –
आपके कवि की संवेदना सत्यानुगामिनी है. तभी उसका स्वर स्पष्ट है. सगढ़ सोच से संवर्धित इस रचना के लिए अतिशय बधाइयाँ.
शुभेच्छाएँ.. .
आदरणीया कुंती मुखर्जी जी बधाई प्रश्नों की झड़ी लगाकर बात स्वीकार करवाने की . आज की स्थिति के लिए कोई और नहीं हम नारियां ही ज़िम्मेदार हैं
मार्मिक और प्रभावी रचना. बधाई.
सुन्दर रचना ...
आदरणीया, आपकी रचना मन को छू गई।
बधाई। आशा है आपकी ऐसी ही और कविताएँ
पढ़ने को मिलेंगी।
सादर,
अंगारों को
रख आंचल में
पल-पल आशा
बोती है
नयन कहां
इनके रोते हैं
ये धरती को
धोती है
ये है स्वाहा
यही स्वधा है
और त्रयी की
ज्योति है
सुंदर रचना हेतु बधाई
आदरणीया, आपकी रचना मन को छू गई।
बधाई। आशा है आपकी ऐसी ही और कविताएँ
पढ़ने को मिलेंगी।
सादर,
विजय निकोर
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