For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ महोत्सव २९ - विषय - रंग पर यह कुछ लिख डाला था पर सुबह देखा  कि वह तो सिर्फ १० तारीख तक ही के लिए था जबकि आज तो ११ तारीख है| अब सोचा क्यूँ ना उस विषय की इस पोस्ट को यहाँ ओ बी ओ के ब्लॉग में ही डाला जाए,  तो अब उस आड़ी तिरछी रचना को अपने पन्ने पर रख रही हूँ ...

रंगों की दुनियाँ

इस बीच

मैंने पाया है खुद को

अकेला एक ऐसी दुनिया में

जहाँ रौशनी न थी

क्यूंकि आखों में ज्योति न थी |

तब जाना रंगों का खिलना

और बिखरना

सुंदरता का रंगों में संवरना

यूँ न होता संभव

जो रौशनी न होती|

तब दिमाग का वैज्ञानिक

लगाता है दौड

देखता है कि रौशनी में

बासंती सुर्खाब परियां

नीलिमा और हरितिमा

श्यामा और धवला

सभी सखियाँ  

और सुनहरी परियां.

हाथों में रजत कलश लिए

छलकाती हैं रंगों की गगरिया |

तितलियों के पंखों में

चटख् रंग

टेसू अनार का लाल रंग

हरी नदिया का दुधिया फेनिल हो जाना

आसमा का नीला और

समुद्र में हरा नीला उतर जाना

जुगनू का चमकना, पानी अरंग   

फूलों के खिलखिल मुस्कुराते रंग

इन्द्रधनुष में बिखरते चटख सतरंग

केंनवासों पर चढते उतरते रहते है रंग|

 

सुरमई सांझ अरुणिम सवेरा

सागर में रंगीली सीपियों का डेरा  

चम्पा चमेली का श्वेत वसन

काले बिगड़ते मेघ धवल

पंखों के रंग पर इतराना  

मोरों का नाच नाच होना मगन ...  

गालों की सुर्खी, अंखिया कजरारी

फ्युली पीली लहराता बसंत,

कुहुकती लगाती कोयलिया काली,

पीले पके आमों पर तोते धानी  |

हीरे से चमचम हिम शिखर ....

चाँद की चांदनी और

सितारों की चुनर ..

यूँ न होता मुमकिन

रंगों की दुनियां  

जो रौशनी में बैठी

किरणों की परियां

भर भर गागर न  

रंग बिखेरती|

रौशनी का मूल्य

और आँखों की ज्योति

एक दुनिया की कीमत है

जग की ज्योति है |

फिर भी मुझे सीखना है

रंगों के उस गणित को,

जिसे आजन्म

बिन ज्योति की आँखें  

देखती हैं 
सोचती हैं

समझती हैं  
वो कैसे परिभाषित करतीं है 
रंगों के इस अद्भुत संसार को

हरेक रंग को ?

परियों तुम आओ

और ढुलका दो  

उन प्यारी आँखों में

ज्योति कलश |

  •  नूतन 

Views: 934

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on March 18, 2013 at 10:43am

इस प्यारी और रंग भरी रचना के लिए हार्दिक बधाई नूतन जी 

Comment by vijay nikore on March 18, 2013 at 10:33am

आदरणीया नूतन जी:


मैंने पाया है खुद को ..अकेला एक ऐसी दुनिया में

जहाँ रौशनी न थी ...क्यूंकि आखों में ज्योति न थी   .... वाह, वाह!

 

सुंदरता का रंगों में संवरना

यूँ न होता संभव ...जो रौशनी न होती                    .... बहुत खूब!

 

यूँ न होता मुमकिन  ... रंगों की दुनियां

जो रौशनी में बैठी   .... किरणों की परियां

भर भर गागर न  रंग बिखेरती                              .... क्या कहने!

 

फिर भी मुझे सीखना है  ... रंगों के उस गणित को,

जिसे आजन्म ...बिन ज्योति की आँखें

देखती हैं सोचती है  ... समझती हैं 

वो कैसे परिभाषित करतीं है

रंगों के इस अद्भुत संसार को

हरेक रंग को ?

परियों तुम आओ ... और ढुलका दो 

उन प्यारी आँखों में   ...ज्योति कलश |  These lines are the epitome

                                                      of perfection in imagination!

 

मैं और क्या कह सकता हूँ ?  ...

_यही  कि  ऐसा  ही  और  लिखने के लिए शुभकामनाएँ!

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on March 15, 2013 at 9:22pm

धन्यवाद डॉ स्वरण जी ... आभार इस सुन्दर टिप्पणी के लिए जो खुद कवितामय लग रही है... सादर 

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 15, 2013 at 1:24pm

 

भाव के साथ साथ कविता के कंटेंट्स व उस का सम्यक मूल्य कविता की परिपक्व्यता और सौन्दर्य बोध उस के श्रृंगार हैं 

फिर भी मुझे सीखना है

रंगों के उस गणित को,

जिसे आजन्म

बिन ज्योति की आँखें  

देखती हैं 

रियली बहुत अच्छा लगी आप की कविता 

Comment by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 6:00pm

आदरणीया डॉ. नूतन जी,हृदय से बधाई

फिर भी मुझे सीखना है

रंगों के उस गणित को,

जिसे आजन्म

बिन ज्योति की आँखें  

देखती हैं 
सोचती हैं

समझती हैं  
वो कैसे परिभाषित करतीं है 
रंगों के इस अद्भुत संसार को

हरेक रंग को ?

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2013 at 3:59pm

आपकी सुन्दर रचना से एक बार फिर रंगों की दुनिया में झाकने का अवसर मिला है, रंगों पर काव्य महोत्सव में लिखी सुन्दर 

रचनाओं में से एक रचना यह भी रची गयी है, जिसके लिए आपको हार्दिक बधाई डॉ नूतन गैरोला जी 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on March 12, 2013 at 2:31pm

आदरणीय सौरभ जी ! इस मंच पर हमें सीखने सिखाने की जो मौका मिलता है..वह इसे सभी जगह से बिलकुल भिन्न बनता है ... और विशेष भी... आप सब से हमें सीखने को मिलता रहे ...सादर 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on March 12, 2013 at 2:27pm

आदरणीय डॉ प्राची ... आपने इन शब्दों को जो मान दिया वह मेरे लिए खुशी का सबब है... आपका तहे दिल शुक्रिया .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 12, 2013 at 10:36am

आदरणीया डॉ. नूतन जी,

बेहद कोमल, निर्मल रंगों से रंगी कल्पनाएँ, जैसे सोच का सागर बह चला, 

इतना सुन्दर शब्द चित्र उकेरा है आपने, मानों मानस पटल पर कोइ रील खुद भी खुद चलने लगी हो.....वाह! 

और सुनहरी परियां.

हाथों में रजत कलश लिए

छलकाती हैं रंगों की गगरिया |.....कितना सुन्दर चित्रण 

रौशनी का मूल्य

और आँखों की ज्योति

एक दुनिया की कीमत है

जग की ज्योति है |...............कितनी सुन्दर सोच-समझ  का समृद्ध विस्तार है 

फिर भी मुझे सीखना है

रंगों के उस गणित को,

जिसे आजन्म

बिन ज्योति की आँखें  

देखती हैं 
सोचती हैं

समझती हैं  
वो कैसे परिभाषित करतीं है 
रंगों के इस अद्भुत संसार को

हरेक रंग को ?.................बहुत सुन्दर चाहना 

परियों तुम आओ

और ढुलका दो  

उन प्यारी आँखों में

ज्योति कलश |...........ज्योतिकलश का ढुलकाना मुग्ध कर गया...वाह अद्वितीय रचना 

यदि यह रचना महोत्सव में होती, तो मैं इसे रंग विषय पर महोत्सव की सबसे खूबसूरत रचना कहती तो अतिशयोक्ति  न होती 

बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीया 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 12, 2013 at 10:35am

सादर धन्यवाद, डॉ. नूतन.. .

यह मंच ही ’सीखने-सिखाने’ का मंच है. हम यहाँ परस्पर सीखते हैं. सहयोग बना रहे, आदरणीया.. .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
19 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service