दोहा --:ःबम-बम भोलेःः--
तन मन भय रगड़ भसम, सब गण करत बखान!
कण कण सत रज तम रमत,समरथ सकल इशान!!1
चरण कमल रज लख करत,शत शत नमन महेश!
भजत भजन हर हर भवम, भय तज मरम गणेश!!2
सगर-तगड़-तरवर-तरन, हर जन धरत परान!
अलख झलक नर मन समझ,पल क्षण बनत महान!!3
जनत झरत लट पट उड़़त, हलचल अवघड़ जान!
तमस शमन भव भय हरत, सत मन बरगद शान!!4
सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Comment
आदरणीय सौरभ पाण्डे.गुरूजी, सुप्रभात! ‘बिन गुरू ज्ञान कहॅा से पाउॅ‘ सर जी, यह दोहा मैने महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर अनायास ही लिखा है, सर जी मुझे भक्ति में विश्वास औरआस्था है! ‘रगड‘ के स्थान पर ‘रगड़त‘ होना चाहिये था, जो टाइप त्रुटि है! तथा ‘लख करत‘ का प्रयोग सिर्फ मात्राएं पूर्ण करने के उद्देश्य से किया था, अब नहीं करूंगा! जी गुरूजी, ‘क्षण‘ के स्थान पर छन ही लिखना चाहिये था किन्तु ‘क्षण‘ से चमक बढ़ गयी पर अब ऐसा नहीं करूंगा! जी सर ‘बरगद मान‘ ही होना चाहिये था, मुझसे गलती हुई है! अन्त में थोड़ा जल्दी हो जाती है जिससे गलती हो ही जाती है! क्षमा चाहता हूं! कृपया इसी तरह कोई त्रुटि हो तो अवश्य निर्देश देने की कृपा करें आप का सुझाव सिर पर हाथ रखने केसमान है! अतरू आशीष बनाये रखें! कृतज्ञ पूर्ण बहुत बहुत आभार..!
भाई केवल प्रसाद जी.. . शिल्प के लिहाज से आपने इन दोहों की किसी उद्येश्य से रचना की है या इनकी रचना अनायास हुई है यह प्रतीत नहीं हुआ.
दोहे चारों चरणों को मिलाकर में कुल ४८ मात्राएँ होती हैं. आपके प्रत्येक दोहों में कुल दो ही गुरु आये हैं और बाकी सभी लघु मात्राएँ हैं. अर्थात्, ४४ लघु और २ गुरु !
दोहों के प्रारूपों में ऐसे दोहे श्वान प्रारूप के दोहे कहलाते हैं .. .
अब आपके दोहों पर -
तन मन भय रगड़ भसम, सब गण करत बखान!
कण कण सत रज तम रमत,समरथ सकल इशान!!.. ..इस दोहे के प्रथम विषम में मात्र १२ मात्राएँ हैं अतः दोषयुक्त चरण है यह.
चरण कमल रज लख करत,शत शत नमन महेश!
भजत भजन हर हर भवम, भय तज मरम गणेश!!.. .. लख करत का प्रयोग उचित नहीं है. लख अपने आपमें पूर्ण क्रिया है. यह दोहा यों शिल्प में सुगढ़ है.
सगर-तगड़-तरवर-तरन, हर जन धरत परान!
अलख झलक नर मन समझ,पल क्षण बनत महान!.. .. बहुत सही. छंद में प्रयुक्त शब्दों के अनुरूप क्षण को छन लिखना था न ?!
जनत झरत लट पट उड़त, हलचल अवघड़ जान!
तमस शमन भव भय हरत, सत मन बरगद शान!!.. . . . वाह-वाह ! जनत झरत लट पट उड़त.. बहुत सुन्दर ! बरगद शान से बेहतर मान होता. यहाँ मान श्लेष होने से दोहे के शृंगार को बहुगुणित करता.
बधाई इस अभिनव प्रयास पर भाई केवलजी..
सगर-तगड़-तरवर-तरन, हर जन धरत परान!
अलख झलक नर मन समझ,पल क्षण बनत महान!!3
जनत झरत लट पट उड़़त, हलचल अवघड़ जान!
तमस शमन भव भय हरत, सत मन बरगद शान!!4
बम बम भोले , बहुत खूब
सुन्दर धार्मिक दोहे- हार्दिक बधाई श्री केवल प्रसाद जी
बहोत ही बढ़िया कहा आपने आदरणीय केवल भाई जी .....सादर
हर-हर बम-बम, बम-बम धम-धम |
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