For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (1)

देश में बहती है जो गंगा वह है क्या?


वह पानी की धारा है या ज्ञान की?


भई दोनों ही तो बह रही हैं साथ साथ, शताब्दियों से!


आज इक्कीसवीं शताब्दि में लेकिन दृष्य कुछ और है.


इस महान् देश की दो महान् धारायें अब शाष्वत नहीं, शुद्ध  नहीं, मल रहित नहीं.


धारा में फंसा है ज्ञान या ज्ञान में फंस गई है धारा!


कौन जानें किस ने किस के बहाव को अवरूद्ध किया?


ज्ञान तो था मार्ग-दर्षक मानवीय चेतना का, मानवता की बुद्धि का.


प्रखर करता था चेतना को, बुद्धि को.


ज्ञान तो था केवल वाद और वाद थे महा-ज्ञान की महा-गंगा की महा धारायें,


संवाद के वाहक और विवादों से दूर.


अब ज्ञान तों ज्ञान की भ्रांति है मात्र!


ज्ञान का अवषे है केवल!


ढेरों के ढेर शब्द ज्ञान, विद्यालयों, महा-विद्यालयों, विष्व-विद्यालयों से बहता हुआ,


वादों संवादों को, चर्चायों को गोष्ठियों को झेलता हुआ,


मानवीय चेतना की निर्मल मंदाकिनी का रास्ता रोके बैठा है.


शाश्वत सत्य की विषुद्ध धारा को बांधे बैठा है!


मानवता की बुद्धि को भ्रमित किये हुए है, वह ज्ञान,


वह ज्ञान रौषनी नहीं चकाचैंध है केवल!


पतंगों की भीड़ है.


धन व ख्याति की लूट है.


गंगा क्या कहे?


इतने वाद जो इक्कट्ठे हो गये हैं


और इतने संवाद कि लाउड स्पीकर कम पड़ गये हैं.


स्टेजें पटी हैं व्याख्याकारों से पंडाल पटे हैं श्रोतायों से.


आदमी वहीं रूका हुआ है, आत्मा वहीं खड़ी है,


अंधेरा जितना अंदर है उतना ही बाहर!


गंगा की तो मूक वाणि है कौन सुन पायेगा?


वे सारे वाद जो पहले गंगा जी का सीना भेदेंगे.


वे सारे लोक के प्रलोक के व्याख्याकार!


वे परोक्ष अपरोक्ष ज्ञान के बांटने वाले!


वे सारे नीति के ज्ञानवान!


वे ज्ञान के नीतिज्ञ!


जो कोई ज़रा सा भी ज्ञानि हो जाता है-


बस सब से पहले अपना ज्ञान गंगा जी को दे डालता है

.
ज्ञान की विस्तृत गंगा में अपना ज्ञान जैसे फेंकने के अंदाज़ में कहता है-

‘हे गंगे! ... तुम तो ज्ञान की महासागर हो!


मैं अपना तुच्छ ज्ञान तुझे अर्पित कर रहा हूं.’


अब श्री गंगा मइया, बीच में सांस रोके,


बीमारों सा उच्चारण लिये रो पड़ती है-

‘अभी और कितना डालोगे और कितनी सदियों तक.


मेरे आर और मेरे पार बसने वाले मेरे बच्चों को


अब ज्ञान की नहीं ज्ञान से निकालने की ज़रुरत है...’

(शेष बाकी ....)

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 13, 2013 at 11:53am

नेकी कर कुँए में फैंक, ज्ञान अर्जित कर गंगा को समर्पित कर, जान बचेगी तो ज्ञान काम आएगा, पहले पवित्र पानी को तो 

अपवित्र होने से बचाओ, ताकि जान बचे,तभी ज्ञान अर्जित कर पायेंगे | जान है तो जहां ही | चेतना जाग्रत करने के उद्धेश 

से लिही गयी अच्छी रचना के लिए बधाई डॉ स्वर्ण जे ओमकंवर जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 9:05am

गंगा मैया पर यथार्थ और सुन्दर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई!

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 7:41am

//आदमी वहीं रूका हुआ है, आत्मा वहीं खड़ी है,

अंधेरा जितना अंदर है उतना ही बाहर!//

//अभी और कितना डालोगे और कितनी सदियों तक.

मेरे आर और मेरे पार बसने वाले मेरे बच्चों को

अब ज्ञान की नहीं ज्ञान से निकालने की ज़रुरत है...’//

बहुत सुन्दर!

बधाई स्वीकारें इस उत्कृष्ट रचना के लिए!

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 10:53pm
गंगा मैया पर यथार्थ और बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें dr. Swaran J. Omcawr जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service