हरिगीतिका/16,12 जय जय हनुमान !!!
हनुमान दास, राम गुन भाष, भक्ति रस ज्ञानी घने।
तु चंचल चपल, तेजस अतिबल, अखिल रवि विद्या जने।।
तुम मारूत सुत, शंकर अंशम, देव सब तप वरदने।
तुम अजर अमर, सुजान सुन्दर, प्रेम रस देखत बने।।1
महत्तम वीर, औ विकट धीर, निर्मलता हृदय रमी।
तुम दीन कथा, समरथ विरथा, तत्छन उबारत गमी।।
बहु विधि सताय, लंक जराए, सीतहि हर दुःख थमी।
संजीवन सुख, लछमन जागे, सफल काज नाहि कमी।।2
रघुवीर पाद, सनेह रूचि रख, काज तुम बड़-बड़ कियो।
श्री राम दिये, मोतिन माला, दांत तुम चट-चट कियो।।
पूंछहि अचरज, सीतहि माता, मोतिया क्यों चट कियो।
बोले हनुमत, राम गुनों बिन, दाह दिल माला कियो।।3
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया, डा0 प्राची सिंह जी, जी मैम,
हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका
१ १ २ १ २, १ १ २ १ २, १ १, २ १ २, १ १ २ १ २
२ २ १ २, २ २ १ २, २ २ १ २, २ २ १ २ अब तो बिलकुल साफ हो गया। आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
आदरणीय, श्री सौरभ पाण्डे, गुरूवर जी, मेरा ध्यान केवल 5वीं, 12वीं, 19वीं और 26वीं मात्रा के लघु होने पर केन्द्रित हो गया था और 11212 पर पकड़ कमजोर हो गई। आपका बहुत-बहुत आभार। जी, सुधार की जरूरत है। सादर,
आ० केवल प्रसाद जी,
हरिगीतिका छन्द पर हुए संवाद को यहाँ पुनः स्पष्ट कर रही हूँ
हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका
१ १ २ १ २ १ १ २ १ २ १ १, २ १ २ १ १ २ १ २
२ २ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २
११ को २ तभी माना जा सकता है जब वो एक ही शब्द का हिस्सा हों
उदाहरण के तौर पर अपनी यह पंक्ति देखिये
हनुमान दास, राम गुन भाष
१ १ २ १ २ १ २ १ १ १ २ १ ................इसे २ पढ़ना संभव नहीं , इस तरह ही गेयता अवरुद्ध होती है
हनुमान दास, राम गुन भाष.....यहाँ भी
१ १ २ १ २ १ २ ...........................यहाँ १२ की नहीं २ २ की आवश्यकता है
विश्वास है अब स्पष्ट हुआ होगा .
भाई केवलप्रसादजी, आपने जिस संवाद की चर्चा की है, उसमें अवश्य कुछ और बातें अंतर्निहित होंगी. फिर भी आपके प्रस्तुत प्रयास पर आपको बधाई.
किन्तु, अमूमन सभी जागरुक प्रयासकर्ताओं ने आपको रचनान्तर्गत कमियों के प्रति अगाह किया है. मुझे ये जान कर आत्मीय संतोष हो रहा है कि आपकी रचना के संदर्भ में पाठकीय दायित्व का सुखद निर्वहन हुआ है.
प्रस्तुत की गयीं दोषपूर्ण रचनाओं पर पाठकों द्वारा हुआ निरर्थक वाह-वाह या अनावश्यक की हौसलाअफ़ज़ाई बिना किसी तथ्य की होती हैं. या, अनावश्यक वाह-वाही विधाओं के प्रति उक्त पाठक की न-जानकारी होना ही बताती हैं.
हरिगीतिका छंद का विधान इस मंच के भारतीय छंद विधान समूह में भी है. आप उचित रेफ़ेरेंस के लिए कृपया उसे देख लें.
किसी संवाद मात्र पर निर्भर रहना दोषपरक ही होगा, जैसा कि आपकी रचना से स्पष्ट प्रतीत हो रहा है. यह तो मान्य ही है कि किसी विधान पर कोई संवाद मूल आलेख के बाद कड़ियाँ होती हैं. अतः मूल लेख को हृदंगम करना किसी रचनाकार का पहला प्रयास होना चाहिये.
दूसरे, भाई संदीपजी ने हरिगीतिका छंद के पदों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण जानकारी साझा की है.
आप
हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका
के अनुसार, या
श्रीगीतिका श्रीगीतिका श्री, गीतिका श्रीगीतिका
के अनुसार या इनके ही सम्यक मिश्रण से शब्द एवं तदनुरूप मात्रा तय करें. शुभेच्छाएँ.. .
आदरणीय, संदीप कुमार पटेल जी, बहुत-बहुत आभार। जी, सुधार की जरूरत है।सादर,
आदरणीय केवल जी सादर
आपकी रचना में प्रवाह अवरुद्ध है
किसी भी छंद में भावों के साथ साथ प्रवाह का होना भी बहुत आवश्यक है
जिसकी कमी खल रही है
इसे कुछ यूँ सुधारें
हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका
श्री राम चन्द्र कृपाल भजमन हरण भव् भय दारुणं
आदरणीया डा0 प्राची सिंह जी, मैम जी आपके सुन्दर मार्गदर्शन एवं आशीष वचन हेतु मैं बार-बार आपको नमन् करता हूं। सादर,
हरिगीतिका छंद पर आपके संशय स्पष्ट हो सके, और आपने मेरे कहे हो मान दिया इस हेतु आभारी हूँ आ० केवल प्रसाद जी
आदरणीय केवल प्रसाद जी,
हरिगीतिका छंद पर आपने प्रयास किया इस लिए आप प्रशंसा के पात्र हैं,
पर आदरणीय इस प्रस्तुति में गेयता पूर्णतः अवरुद्ध है..
कृपया आप वह नियम सांझा कीजिये, जिस पर आपने इस छंद को लिखा है ...... बाकी चर्चा उसके बाद करते हैं।
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