इक ताज़ा ग़ज़ल पेशेखिदमत है आपके जानिब
वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है
ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है
फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या
बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है
मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे
मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है
बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की
पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है
अहम् झूठा नहीं करता गिला शिकवा नहीं करता
सभी के दिल में वो अपना ठिकाना ढूँढ लेता है
उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में
ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है
उजालों ने कभी उस दीप की कीमत नहीं जानी
जो खुद जलने अँधेरों का खजाना ढूँढ लेता है
संदीप पटेल “दीप”
Comment
sandeep ji the best lines is this
उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में
ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है
badhai
BAHOT KHOOB..................
सुन्दर गजल भाई संदीप पटेल जी, आपकी इन पंक्तियों को मई यूँ कहु -
उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भरी आँखों से
ये तो संदीप है जो कूड़े में खजाना ढूँढ लेता है । - उम्दा
संदीप जी वैसे तो ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में बहुत ही खूबसूरत है लेकिन मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया वो है :_
फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या
बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है....
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल .. बधाई स्वीकारें !
आदरणीय आशीष भाई!
उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में
ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है |कमाल हैं..
आदरणीय आशीष भाई सादर
मेरे इस प्रयास को सराहने और हौसलाफजाई करने लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सादर आभार
फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या
बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है
मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे
मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है
उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में
ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है |
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