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वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है "ग़ज़ल"

इक ताज़ा ग़ज़ल पेशेखिदमत है आपके जानिब

 

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है

ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है

 

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है

 

मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे

मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है

 

बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की

पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है

 

अहम् झूठा नहीं करता गिला शिकवा नहीं करता

सभी के दिल में वो अपना ठिकाना ढूँढ लेता है

 

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है

 

उजालों ने कभी उस दीप की कीमत नहीं जानी

जो खुद जलने अँधेरों का खजाना ढूँढ लेता है 

 

संदीप पटेल “दीप”

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Comment by Dr.Ajay Khare on April 8, 2013 at 3:09pm

 sandeep ji the best lines is this

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है

 badhai

Comment by Shyam Narain Verma on April 6, 2013 at 5:38pm

BAHOT KHOOB..................

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 6, 2013 at 1:04pm

सुन्दर गजल भाई संदीप पटेल जी, आपकी इन पंक्तियों को मई यूँ कहु -

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भरी आँखों से   

ये तो संदीप है जो कूड़े में खजाना ढूँढ लेता है ।  - उम्दा 

Comment by Parveen Malik on April 6, 2013 at 12:57pm

संदीप जी वैसे तो ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में बहुत ही खूबसूरत है लेकिन मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया वो है :_

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है....

बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल .. बधाई स्वीकारें !

Comment by विजय मिश्र on April 6, 2013 at 12:29pm
संदीपजी , यहाँ भी आपने दमदार चीज परोसी , हर मिसरे का अपना अलग मिजाज है और वो दिमाग के किसी और हिस्से में जाकर एक और नई भूख को मिटाता है . बधाई हो .
Comment by ram shiromani pathak on April 6, 2013 at 11:01am

आदरणीय आशीष भाई!

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है |कमाल हैं..

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 5, 2013 at 11:50pm

आदरणीय आशीष भाई सादर

मेरे इस प्रयास को सराहने और हौसलाफजाई करने लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

सादर आभार

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 5, 2013 at 11:42pm
वाह वाह वाह  !!!  क्या शानदार ग़ज़ल कही है संदीप भाई...
ये अशआर तो कमाल के हैं...

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है

 

मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे

मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है

 

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है |

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