दुर्मिल सवैया..........!!!.जय जय बजरंगबली !!!
बजरंगबली सुख शांति मिले, जय राम कहे हरि प्रीति बढ़े।
मन प्रेम रसे अति धीर धरे, उर राम बसे नहि होत बड़े।।
हनुमान कहे मन मान सधे, हम बालक हैं गुन गान अड़े।
सुर रीति सजे नवनीत गहे, हम दीन बड़े अति हीन मढ़े।।1
तुम दीन दयाल सुभाय भली, दर आय सभी सुख पाय चली।
रघुवीर सदा सिर हाथ रखीं, हिय छाप धरीं तन राम कली।।
तुम भूत पिचास भगाय हॅसी, सिय मातु सुजान अशीष फली।
तुम दानव काल समेट सभी, तुम शेषहि वीर जगाय भली।।2
प्रभु जान अनाथ दया कहता, हम हैं अति पाप छमा सठता।
सुख लाय सदा दुख दूर हटा, शिख सरन पड़ा वरदान जता।।
प्रभु नाथ सनाथ रमा रमता, फलियाय सदा करता भरता।
प्रभु दास सदा हरि नाम जपा, अब आय सहाय बनो हरता।।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
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तुम दीन दयाल सुभाय भली, दर आय सभी सुख पाय चली।
रघुवीर सदा सिर हाथ रखीं, हिय छाप धरीं तन राम कली।।
तुम भूत पिचास भगाय हॅसी, सिय मातु सुजान अशीष फली।
तुम दानव काल समेट सभी, तुम शेषहि वीर जगाय भली।।2
जय बजरंग बली की
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी, सादर नमन! मैंने कई बार पढ़ने के बाद ही पोस्ट किया है। गहे के स्थान पर गही रह गया था जिसे एडिट करके पुनः पोस्ट किया है। गेयता पर भी ध्यान दिया, फिर भी आपका सुझाव शिरोधार्य है। बहुत बहुत आभार। सादर,
प्रभु जान अनाथ दया कहता....प्रभु मुझे अनाथ समझें..मैं दया की भीख मांगता हूं।
हम हैं अति पाप छमा सठता।...मैं अतिपापी हूं...मेरी मूर्खता को क्षमा करना।
सुख लाय सदा दुख दूर हटा ....सदा प्रसन्नता देने साथ ही सभी दुःख दूर कीजिए।
शिख सरन पड़ा वरदान जता।।...शीश चरनों में झुका है कृपया आशीष दीजिए।
प्रभु नाथ सनाथ रमा रमता....आप स्वामी हैं आप मेरे मालिक बनिए मैं राम राम जपता हूं।
फलियाय सदा करता भरता।....आप सदा फल देने वाले हैं और सदा कर्ता भर्ता हैं।
प्रभु दास सदा हरि नाम जपा...प्रभु यह दास सदा ही आपका सुमिरन करता है।
अब आय सहाय बनो हरता।।....कृपया अब आकर मेरी मदद करके कष्ट हरिए।
भावार्थ आदर सहित।
आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, दुर्मिल पर सुन्दर प्रयास हुआ है, अंतिम सवैया में एक जगह चुक हुई है. एक दो जगह मैं समझ भी नहीं पाया की आप क्या कहना चाह रहे हैं. आप सतत प्रयासरत है यह भी अच्छी बात है.
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