आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों, मित्रों एवं प्रिय पाठकों आप सभी को सादर प्रणाम. भौंरा और फूल पर आधारित उनके मिलन एवं विरह पर एक कविता लिखने का छोटा सा प्रयास किया है, आशा है आप सभी को पसंद आएगा.
रसिक लाल = भौंरे का नाम
मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.
तुम मीठे रस की मलिका हो,
मैं प्रेमी थोड़ा पागल हूँ.
तुम मंद - मंद मुस्काती हो,
मैं होता रहता घायल हूँ.
मेरा तन काला, तुम मखमली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.
जब ऋतु बसंती बीत गई,
तब तेरी मेरी प्रीत गई.
तुम मुरझाई मैं टूट गया,
मौसम मतवाला बीत गया.
नैना भीगे मुस्कान चली
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय मनोज जी हार्दिक आभार
आदरणीया वंदना जी रचना की सराहना हेतु हार्दिक आभार
प्रिय अरुण जी बहुत सुन्दर भाव ...थोडा समय दे विद्वद जन की बात पर गौर करिए और सजाइए
आदरणीय भाई अरुण जी बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने //हार्दिक बधाई स्वीकारें।
सबसे पहले अगर बात नायक-नायिका की हो रही है तो शुरुआत है भ्रमपूर्ण है
मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली. // धरा तो स्त्रीलिंग है फिर उनके मिलन विरह की बात कैसे?? यहाँ आप चाहें तो गगन से काम चला सकते है।
मेरा तन काला, तुम मखमली. // में आप 'मै तन काला, तुम मखमली' करें अगर तो कैसा रहे
आदरणीय राणा प्रताप जी ने दूसरी पंक्ति में "बसंती को बासंती करने से काम चल सकता है" इंगित कर ही दिया है
तुम मुरझाई मैं टूट गया, // फिर मुरझाई फिर टूट गयी
मौसम मतवाला बीत गया. // मिलने की बेला बीत गयी ....या पता नहीं आपको यहाँ "बीत गयी" से ही तुकांत करना होगा
सादर शुभकामनायें ....प्लीज़ कुछ ठीक न लगे तो आप मुझे क्षमा करियेगा भाई अरुण जी
सादर गीतिका 'वेदिका'
बहुत सुन्दर रचना भाई अरुण जी हार्दिक बधाई स्वीकारें।
अनंत जी..श्रृंगार के भाव अच्छे हैं ...डा प्राची जी के कथन से मैं भी सहमत हूँ| दो पंक्तियों में गेयता बाधित हो रही है...यहाँ यह स्पष्ट करना चाहूंगा की मात्राओं के योग के साथ साथ उनकी तरतीब भी गेयता के लिए आवश्यक है इसलिए आपको "मखमली" शब्द को हटाना ही पडेगा...कुछ और सोचें| दूसरी पंक्ति में बसंती को बासंती करने से काम चल सकता है|बधाई ..... खूब लिखें .. ..अच्छा लिखें|
कोमल कांत शब्दावली... सुकुमार भाव।
सादर,
विजय निकोर
प्रिय अरूण शर्मा जी,
बहुत सुन्दर कोमल भाव... रसिक लाल और फूल कली (भंवरा औत पुष्प ) के माध्यम से प्रेम की सुकोमल अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
मैं भी आदरणीय सतीश जी के कहे से पूर्णतः सहमत हूँ , यह रचना थोडा सा और समय मांगती है
१६ १६ की मात्रा पर आपने इसे लिखा है
मेरा तन काला, तुम मखमली..................यहाँ मात्रा १७ हो गयी है और गेयता भी अवरूद्ध है
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.
जब ऋतु बसंती बीत गई,..............मात्रा १५
तब तेरी मेरी प्रीत गई..............इन दोनों पंक्तियों को थोडा और वक़्त दें
तुम मुरझाई मैं टूट गया,
मौसम मतवाला बीत गया...............बीत गया की जगह रूठ गया कर के देखें
शुभेच्छाएं
प्रेम का सुन्दर वर्णन ............मनमोहक !
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