खुरदुरी हथेलियाँ
Comment
आदरणीय सौरभ जी बहुत- बहुत हार्दिक आभार रचना के मर्म में अपने स्वर मिलाये। आप सही कह रहे हैं अपने स्वार्थ में मजदूरों का प्रयोग करना उनसे नारे लगवाना सब इनके हथकंडे हैं उनकी स्थिति जाकर उनकी बस्ती उनके घरों या उनके परिवारों से जाकर पूछें मजदूर दिवस के नाम पर सिर्फ उनको ठगा जा रहा है।
आदरणीय अशोक रक्ताले जी बहुत- बहुत हार्दिक आभार रचना के मर्म में अपने स्वर मिलाये ।
आपकी संवेदनशीलता के प्रति हृदय से नमन करता हूँ.
मज़दूर के नाम पर संस्थाओं द्वारा किये जारहे घात-प्रतिघात कितनी असंवेदनशील हो चके हैं इसका आपने बखूबी वर्णन किया है. सुविधाभोगी ’मज़दूरों’ द्वारा ही नारे लगाये और लगवाये जाते हैं. वास्तविक मज़दूर तो सदा-सदा से हाशिये पर अपनी ज़िन्दग़ी को समेटता-फैलाता रहता है.
इस रचना पर बार-बार बधाई, आदरणीया राजेशकुमारीजी.
आदरेया राजेश कुमारी जी सादर, बहुत ही मर्म स्पर्शी रचना, मगर दृश्य रोजमर्रा का यथार्थ को पुष्ट कर रहा है. और ये नारे मजदुर एकता जिंदाबाद!?शायद नारे लगाने वालों के पेट भरे हुए हैं. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.सादर.
आदरणीया मैं गलती कर रहा था और आपको परेशान कर रहा था। आपने मार्गदर्शन दिया इसके लिए आभार!
भावना तिवारी जी रचना को मान देने हेतु दिल से आभार |
प्रिय प्राची जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया ने लेखन को जो मान दिया उस के लिए दिल से आभारी हूँ
मजदूर दिवस पर सुन्दर मर्मस्पर्शी क्षणिका के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश जी..
थोड़ी सी लयात्मकता या प्रवाह की कमी महसूस हुई अभिव्यक्ति में पर कथ्य बहुत समीचीन है और अंत बहुत सशक्त.
पुनः बधाई
ब्रजेश जी यदि जैसे करुँगी तो अर्थ ही बदल जाएगा ----पचास के जैसे चेहरे पर =पचास की उम्र के जैसे चेहरे पर ---ये अर्थ हो जाएगा आशा करती हूँ की अब शंका का समाधान हो गया होगा
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