॥ मेरा साथ निभाना तुम ॥
मै बसंत हूँ , मेरी बहार बन जाना तुम ।
मै सूरज बनूँ तुम्हारा, मेरी किरण बन जाना तुम ।
बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।
जब लडखाडँऊ मै ठोकर खाकर, बाहो मे अपनी थामना तुम।
बन के पथप्रदर्शक मेरे, मुझको राह दिखाना तुम ।
बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।।
ओढ के चुनर लाज शरम की, मांग मे टीका सजाना तुम ।
चूडी बिन्दी लाली काजल से, सजना और साँवरना तुम।
रुन छुन रुन छुन पहन के पायल, मेरे घर आ जाना तुम ।
फिर हो कर मेरी सिर्फ मेरी , सब को भुल जाना तुम ।
ऐसे ही हर जन्म मे, मेरी बनके आना तुम ।
बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।।
सुबह सुबह गीले बालो को, झटक के मुझको उठाना तुम ।
चूम के मेरे माथे को, कान मे गुडमार्निग कह जाना तुम ।
जब पकडू मै हाथ तुम्हारा, चल गंन्दे कह कर हाथ छुडाना तुम ।
जब जाउ मै घर से बाहर, तो खिडकी से हाथ हिलाना तुम ।
शाम को थक के आउ घर पे तो, मेरे सर को सहलाना तुम ।
रात को मेरे साथ मे तुम भी, प्यारे सपनो मे खो जाना तुम ।
बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ॥
यू ही कभी कभी नकली सा, मुझसे रुठ जाना तुम ।
मै मनाउंगा तुम को तो, झट से मान जाना तुम ।
गर मै रुठू तो ऐसे ही, मुझको भी रिझाना तुम ।
गर उदास हू मै कभी, तो मुस्काना तुम ।
अपनी उस मुस्कान से, मेरा गम मिटाना तुम ।
आये कोई मुसीबत चाहे, मेरी हिम्मत बन जाना तुम।
गुजर जायेगी हर रात अन्धेरी, ये बोल के हौसला बढाना तुम ।
बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।।
जब महल नही हो पास मे मेरे, तो झोपडी को महल बनाना तुम ।
छ्प्पन भोग नही रहे तो, सुखी रोटी मे प्यार लगाना तुम ।
मिल बाँट के आधी-आधी, मेरे संग खा लेना तुम ।
वक्त बदलेगा मौसम बदलेगा, पर बदल मत जाना तुम ।
बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।।
जब वो आयेगा बीच हमारे , मुझसे दूर न होना तुम ।
मै बँनू जब घोडा उसका , तो दूर से मुस्काना तुम ।
जब गिरेगा घोडे से तो, ले बाँहो मे लाड लडाना तुम ।
थाम के चलेगा जब मेरी उंगली , तो उसकी बलैया लेना तुम ।
बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बसंत नेमा जी दिल में बसे प्यारे हसीन ख़्वाबों को (जो शायद आपकी तरह हर पुरुष के ख़्वाब होंगे )बहुत सुन्दरता से गीत में ढाला है बहुत-बहुत बधाई
आ0 उषा दीदी जी ..आप को रचना इतनी पसन्द आई उसके लिये बहुत बहुत शुक्रिया .....
आदरणीय बसंत नेमा जी, कितना मीठा ख़्वाब है आपकी यह कविता!
मैं अगर मेरे पति को पढ़ाऊंगी तो वो आपके दीवाने हो जायेंगें... क्षमा करना, आपकी कविता पढ़कर अति ख़ुशी हो रही है. इसे व्यक्तिगत ना लें.
धन्यवाद.
आदरणीय अशोक जी .रचना मे कुछ ट्ंकण त्रुटिया थी जिस कारण उसे फिर से पोस्ट की गई है ..रचना को पसन्द करने के लिये धन्यवाद
श्याम जी , कुंती जी रचना को आप जैसे गुणी जनो का आशिर्वाद मिला .मेरा सौभाग्य है ...... ऐसे ही अपना अशीष बनाये रखे ।
आदरणीय बसंत जी सादर सुन्दर रचना मगर ऐसा लग रहा है शायद पहले भी यह रचना पढ़ चुका हूँ. हो सकता है दोपहर में भी पढ़ी हो. सुन्दर रचना श्रृंगार रस को आधार माने तो यह प्रयास ही प्रतीत हो रही है. इस सुन्दर प्रयास पर सादर बधाई स्वीकारें.
बहुह सुंदर जैसे धूप में चलते चलते ठंडी छाँव का मिल जाना ./सादर / कुंती .
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
आ0 प्रदीप जी आप का अशीष पाकर रचना धन्य हो गई ....ऐसे ही अपना आशीष बनाये रखे .....धन्यवाद
सुन्दर गीत, भाव प्रधान, बधाई. नेमा जी
लिखते रहिये, गाते रहिये
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