For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

॥ मेरा साथ निभाना तुम ॥ (श्रंगार रस का पहला प्रयास )

 

॥ मेरा साथ निभाना तुम ॥

मै बसंत हूँ , मेरी बहार बन जाना तुम ।

मै सूरज बनूँ तुम्हारा, मेरी किरण बन जाना तुम । 

बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।

जब लडखाडँऊ मै ठोकर खाकर, बाहो मे अपनी थामना तुम।

बन के पथप्रदर्शक मेरे, मुझको राह दिखाना तुम ।

 बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।।

ओढ के चुनर लाज शरम की, मांग मे टीका सजाना तुम ।

चूडी बिन्दी लाली काजल से, सजना और साँवरना तुम। 

रुन छुन रुन छुन पहन के पायल, मेरे घर आ जाना तुम ।

फिर हो कर मेरी सिर्फ मेरी , सब को भुल जाना तुम ।

ऐसे ही हर जन्म मे, मेरी बनके आना तुम ।

बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।।

सुबह सुबह गीले बालो को, झटक के मुझको उठाना तुम ।

चूम के मेरे माथे को, कान मे गुडमार्निग कह जाना तुम ।

जब पकडू  मै हाथ तुम्हारा, चल गंन्दे कह कर हाथ छुडाना तुम ।

जब जाउ मै घर से बाहर, तो खिडकी से हाथ हिलाना तुम ।

शाम को थक के आउ घर पे तो, मेरे सर को सहलाना तुम ।

रात को मेरे साथ मे तुम भी, प्यारे सपनो मे खो जाना तुम ।

बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ॥

 

यू ही कभी कभी नकली सा, मुझसे रुठ जाना तुम ।

मै मनाउंगा तुम को तो, झट से मान जाना तुम ।

गर मै रुठू तो ऐसे ही, मुझको भी रिझाना तुम । 

गर उदास हू मै कभी, तो मुस्काना तुम ।

अपनी उस मुस्कान से, मेरा गम मिटाना तुम ।

आये कोई मुसीबत चाहे, मेरी हिम्मत बन जाना तुम।

गुजर जायेगी हर रात अन्धेरी, ये बोल के हौसला बढाना तुम ।

बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।।

जब महल नही हो पास मे मेरे, तो झोपडी को महल बनाना तुम ।

छ्प्पन भोग नही रहे तो, सुखी रोटी मे प्यार लगाना तुम ।

मिल बाँट के आधी-आधी, मेरे संग खा लेना तुम ।

वक्त बदलेगा मौसम बदलेगा, पर बदल मत जाना तुम ।

बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।।

जब वो आयेगा बीच हमारे , मुझसे दूर न होना तुम ।

मै बँनू जब घोडा उसका , तो दूर से मुस्काना तुम ।

जब गिरेगा घोडे से तो, ले बाँहो मे लाड लडाना तुम ।

थाम के चलेगा जब मेरी उंगली , तो उसकी बलैया लेना तुम ।

बन के मेरे जीवनसाथी मेरा साथ निभाना तुम ।।

 "मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 12762

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 8, 2013 at 11:08am

बसंत नेमा जी दिल में बसे प्यारे हसीन ख़्वाबों को (जो शायद आपकी तरह  हर पुरुष के ख़्वाब होंगे )बहुत सुन्दरता से गीत में ढाला है बहुत-बहुत बधाई 

Comment by बसंत नेमा on May 8, 2013 at 10:21am

आ0 उषा दीदी जी ..आप को रचना इतनी पसन्द आई उसके लिये बहुत बहुत शुक्रिया ..... 

Comment by Usha Taneja on May 7, 2013 at 6:44pm

आदरणीय बसंत नेमा जी, कितना मीठा ख़्वाब है आपकी यह कविता! 

मैं अगर मेरे पति को पढ़ाऊंगी तो वो आपके दीवाने हो जायेंगें... क्षमा करना, आपकी कविता पढ़कर अति ख़ुशी हो रही है. इसे व्यक्तिगत ना लें.

धन्यवाद. 

Comment by बसंत नेमा on May 7, 2013 at 10:14am

आदरणीय अशोक जी .रचना मे कुछ  ट्ंकण त्रुटिया थी जिस कारण उसे फिर से पोस्ट की गई है ..रचना को पसन्द करने के लिये धन्यवाद 

श्याम जी , कुंती जी रचना को आप जैसे गुणी जनो का आशिर्वाद मिला .मेरा  सौभाग्य है ...... ऐसे ही अपना अशीष बनाये रखे । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 6, 2013 at 6:55pm

आदरणीय बसंत जी सादर सुन्दर रचना मगर ऐसा लग रहा है शायद पहले भी यह रचना पढ़ चुका हूँ. हो सकता है दोपहर में भी पढ़ी हो. सुन्दर रचना श्रृंगार रस को आधार माने तो यह प्रयास ही प्रतीत हो रही है. इस सुन्दर प्रयास पर सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on May 6, 2013 at 5:34pm

बहुह सुंदर जैसे धूप में चलते चलते ठंडी छाँव का मिल जाना ./सादर / कुंती .

Comment by Shyam Narain Verma on May 6, 2013 at 4:05pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by बसंत नेमा on May 6, 2013 at 2:13pm

आ0 प्रदीप जी आप  का अशीष पाकर रचना धन्य हो गई ....ऐसे ही अपना आशीष बनाये रखे .....धन्यवाद 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2013 at 1:40pm

सुन्दर गीत, भाव प्रधान, बधाई. नेमा जी 

लिखते रहिये, गाते रहिये 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service