For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यह रोज़ ही की बात है

जब रात गए,

शबनम की बरसात हुआ करती है-

पात पात रात भर

वात बहा करती है,

चोरी छिपे मैंने भी देखा है

दोनों को,

जब रात से प्रभात की

मुलाक़ात हुआ करती है -

मैं तो बस दर्शक हूँ

यह एक तसवीर है.

(2)

रात की लज्जा,

चहारदीवारी के साये में,

मेरे आंगन में छुपे

कलियों के आंचल में

सिमट-सिमट जाती है -

लेकिन वह सूरज

अनायास मेरे घर की

प्राचीर को लांघ कर,

फूलों के पराग में,

अपनी किरणों को टाँगकर

आखरी बूँदों को भी

आहोश में लेता है-

मुझे  लगने लगता है

रात का अब अंत है

और,

यही उसकी तक़दीर है,

मगर,

यह मात्र एक तसवीर है.

(3)

फिर शाम हुआ करती है.

सुर्ख सा चेहरा लिये,

बादलों के आड़ में

सूरज जा छिपता है.

क्षितिज की दहलीज पर

आहट सी होती है-

शर्मीली रात,

अभिसारिका रात,

मेरे बाग की कलियों को

थपथपाने आती है.

उसके आँसुओं की

टप-टप आवाज़,

मेरे दिल की

नयी धड़कन बन जाती है.

एक प्रश्न सा उठता है -

कैसा यह नीर है

यह कैसी तसवीर है?

(4)

कुछ प्रकाश सा होता है,

रात का हर अंग अब

गुनगुनाने लगता है.

छुपकर मैं देखता हूँ,

तारों के झुरमुट से

एक चेहरा हँसता है-

अरे!!

यह तो मुखौटा है,

चाँदनी की बाँह थामे

सूरज फिर से लौटा है.

(5)

अब जानता हूँ -

रात नहीं रोती है,

प्यार नहीं सोता है,

शबनम तो मोती है

उजाला क्यों होता है.

क्यों पथिक के पथ पर रात

दामन फैलाती है,

क्यों किसीके छूने पर

यूँ सिहरित हो जाती है.

झूठे सारे बंधन हैं,

झूठी यह प्राचीर है,

सच तो है,

जीवन एक सुंदर तसवीर है

(6)

डोलती हुई नैया है

डोलते अरमान हैं,

उठती हुई लहरों में

दिल की,

मीठी परछाईँ है -

यह एक तसवीर है.

(7)

बीते हुए,

धधकते हुए कल पर,

आज के रूठे हुए

आवारा गगन के पर्दे पर,

मेरी हथेली पर,

खीँची गयी लकीरों का अवलम्बन लिये

मेरी तक़दीर है -

यह भी तसवीर है.

(8)

ज़िंदगी के गली-कूचे से

उठती  हुई आवाज़ें,

विचारों को हर मोड़ पर

मोड़ देती हुई आवाज़ें,

मेरे थके हुए कदमों को

पुकारती आवाज़ें -

तुम्हारे निर्वाक होठों पर आकर

थरथरा रही हैं .....

यह अंतिम तसवीर है.

Views: 503

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sonam Saini on May 10, 2013 at 3:14pm

बेहद खुबसूरत रचना आदरणीय शरदिंदु  मुखर्जी जी .. बधाई

Comment by विजय मिश्र on May 10, 2013 at 12:46pm
जीवन की तस्वीरों का एक प्यारा सा एल्बम है आपकी यह कविता .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on May 10, 2013 at 1:26am

मैं आप सभी महानुभावों को नमन करता हूँ मुझे कविता के साथ बाँधे रखने के लिये....प्रशंसा और सकारात्मक टिप्पणी की मजबूत डोर से. विशेषकर आ. सौरभ जी और श्रद्धेय विजय निकोर जी के संवेदनशील मन को ये पंक्तियाँ भा गयीं, इससे अपार प्रसन्नता मिली. आ. श्री रक्ताले तथा आ. लाडीवाला जी का आभार जो उन्होंने इस प्रस्तुति की गहनता को परखा. भाई श्री कुंदन सिंह जी ने आशा जगायी कि आज के युवाओं में अप्रत्यक्ष भावनाओं को समझने और जानने की इच्छा और क्षमता दोनो है. मैं नहीं, मेरी कल्पना, मेरी लेखनी धन्य हो गयी. सविनय आभार.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 9, 2013 at 1:28pm

रात के प्रभात से मुलाक़ात की तस्वीर से होठों पर आकर थरथराती अंतिम तस्वीर तक सुन्दर कलम चली है 

आपकी आदरणीय शरदिंदु मुखर्जी | सुन्दर भाव लिए रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे 

Comment by vijay nikore on May 9, 2013 at 12:31am

 

रात की तस्वीर के माध्यम आपने ज़िन्दगी के पहलुओं का, और

अकेलेपन से जूझने का बड़ा जीवंत और काव्यमय वर्णन दिया है।

ऐसी रचनाएँ मुझ जैसे संवेदनशील को कहीं भीतर तक छू जाती हैं।

ऐसी अभिव्यक्ति के लिए बधाई, आदरणीय शरदिंदु जी।

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2013 at 8:53pm

रात के कई बिम्ब ले कर रची गयी बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Kundan Kumar Singh on May 8, 2013 at 10:49am

आदरणीय शरदिन्दु जी। मुझे इस कविता के भाव और चित्रण का अध्ययन काफी रहस्यमय प्रतीत हुआ। बिंबो की कल्पना शानदार और बेजोड़ है। हार्दिक बधाई।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2013 at 8:37am

आ0 शरदिन्दु जी,   अतिसुन्दर भाव, सुन्दर लय और एक अपनापन, आत्मोद्गार सुन्दर अभिव्यक्ति सजीव चित्रण है।   इन सारी तस्वीरों में कौन सी तस्वीर और कौन सा यर्थात जीवन दोनों को अलग अलग  करना मुश्किल है।   शुभकामनाओ सहित हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 8, 2013 at 12:28am

यह सही है कि शब्द-चित्र का उकेरा जाना सरल प्रयास नहीं है. आदरणीय शरदिन्दुजी, आपके सभी चित्र कल्पना और सचाई को संतुलन में बाँधे हुए हैं. गहरी रात की गोद में निपट अकेलापन कैसे जीवित हो उठता है यह किसी संवेदनशील व्यक्ति केलिए सदा से भावनात्मक रहा है. यह भाव-दशा सापेक्ष हुआ करती है,

प्रस्तुत हुए शब्द-चित्रों के इन विन्दुओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service