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मुझसे कभी तू रूठ न जाना

"ऐ चांदनी मेरी ,
मुझसे तू कभी रूठ न जाना

खोई सी हैं धड़कनें तुझमें
मुंसलिक मेरी साँसें तुझसे
महफ़िल में ख्वाबों के
तन्हा कितना दिल ये
छिप के यूँ चिलमन में तू
कभी न मुझको तड़पाना
ऐ चांदनी मेरी ,
मुझसे तू कभी रूठ न जाना

हिना की खुशबू में तू
ढल के मेरे घर आना
पाज़ेब की सरगम बन
दिल में तू बस जाना
ख्यालों के दरीचों से तू
सिरहाने कभी उतर आना
ऐ चांदनी मेरी ,
मुझसे तू कभी रूठ न जाना

पूरे चाँद की रातों में
मेहँदी रचा के हाथों में
सजा के सपने आँखों में
दरमयाँ इन बाँहों के
कभी तुम गुम हो जाना
न कर बहाने अब तू जानाँ
ऐ चांदनी मेरी ,
मुझसे तू कभी रूठ न जाना''

~~~ चिराग़

May 10,2012 

"पूर्णतः मौलिक एवम् अप्रकाशित''

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Comment

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Comment by Kedia Chhirag on May 17, 2013 at 4:29pm

आप सभी ने अपने आशीर्वचनो से मेरा बहुत उत्साह वर्धन किया ...ह्रदय से बहुत बहुत आभार ......

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 15, 2013 at 8:33pm

सुन्दर रचना आदरणीय चिराग जी.

Comment by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:15pm

चिराग भाई जी,  बहुत सुन्दर।  

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 8:44pm

अच्छा लिखा आपने ...सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2013 at 4:30pm

सुन्दर अभिव्यक्ति हेतु सस्नेह बधाई स्वीकार करें 

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 12:23am

 बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 12, 2013 at 12:55pm

आ0 चिराग भाई जी,  बहुत सुन्दर।  बधाई स्वीकारें।  सादर,

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