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शत शत प्रणाम

 

जो सुबह देखता हु,

शाम को लिखता हु,

रात मे इत्मिनान करता हु,

परिपक्व नजरो को,

जागरूक विचारो को,

मेह्नत और लगन को,

शत शत प्रणाम करता हु.

यतीन्द्र जनता है,

राह कठिन है,

पर वो अविचल है,

उठने वाली कर्कस आवाज का,

सरोकार करता हूँ,

नयी सोच और विस्वाश,

परिवर्तन के मार्ग को,

शत शत प्रणाम करता हूँ. 

यतीन्द्र अब अज्ञानी नहीं,

जिन्दगी उसकी बेमानी नहीं,

सत्य की पूजा और प्रकृति से,

प्यार करता हूँ, 

अतुल्यनीय जज्बातों को,

ज्वलंत किस्सों को,

शत शत प्रणाम करता हूँ.

शत शत प्रणाम करता हूँ.

 

यतीन्द्र पाण्डेय

 

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Comment by Admin on May 16, 2013 at 7:23am

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Comment by yatindra pandey on May 15, 2013 at 11:52pm

hailo sir

thank you for ur valuable comment

ab sir mai ye likhna nahi chahta tha par likh kar bata raha hu hum sab jab bhi koi blogs post karte hai to pahle likh lete hai baad mai post karte samay use check karke hi post karte hai par is web par jab mai aaya to check karne ke liye ek poem uncheked daal di aur usmai erors ho gaye maaf kijiyaga mai kisi ko galat nahi kah raha bas sach se avgat kara raha hu.

thank you

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 15, 2013 at 8:41pm

आदरणीय सुन्दर अभिव्यक्ति है, किन्तु बहुत जरूरी है आदरेया सीमा अग्रवाल जी के दिए सुझावों को समझना. 

Comment by yatindra pandey on May 14, 2013 at 9:43pm

maaf kijiyega mam in asudiyo ke liye aage se mai dhayn dunga aur sahi marg darshan ke liye bahut bahut dhanyvaad.

 

Comment by seema agrawal on May 13, 2013 at 11:38pm

जो सुबह देखता हु,//हूँ

मेह्नत और लगन को,//मेहनत

उठने वाली कर्कस आवाज का,//कर्कश

नयी सोच और विस्वाश,//विश्वास 

अतुल्यनीय जज्बातों को,//अतुलनीय 

यतीन्द्र जी किसी भी रचना से जुड़ने के लिए एक  भाव प्रवाह चाहिए होता है जो स्वयमेव रचनाकार के शब्दों के साथ पाठक को बहा ले जाता है परन्तु जब शब्द ही अशुद्ध हों तब  न तो अर्थ प्रेषित होगा और न हीं तादात्म्य स्थापित हो सकेगा 

आपके इस प्रयास और प्रस्तुति की सराहना करती हूँ ..........साथ ही यह भी कहना चाहूंगी शब्दों के सही टंकण पर ध्यान दीजिये 

Comment by yatindra pandey on May 13, 2013 at 11:21pm

aap sabhi ka mere jajbato tak pahuchne ke liye dhnyvaad

pradeep sir please galtiyo ko bata de aapka aabhar hoga taki vo mai dobara n karu

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2013 at 4:26pm

आदरणीय यतीन्द्र जी 

सादर स्वागत है 

बात बढ़िया 

शब्द ठीक कीजिये 

पुनः  पढ़िए 

बधाई. 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 13, 2013 at 10:19am

नयी सोच और विस्वाश,

परिवर्तन के मार्ग को,

शत शत प्रणाम करता हूँ. - यही सोच तो विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, आपकी इस सच को शत शत प्रणाम भाई श्री यत्तिन्द्र जी 

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 12:26am

 बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना।  बधाई स्वीकारें।   सादर,

Comment by श्रीराम on May 12, 2013 at 7:50pm

सुन्दर रचना ...

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