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ग़ज़ल "बह रही गंगा अजल से पापियों के वास्ते"

हो गये सब सर कलम कुछ रोटियों के वास्ते 
जैसे उगते हों शज़र बस आरियों के वास्ते 

दौरे वहशत पूछिए मत, बढ़ रही कैसी हवस 
है परेशां बाप अपनी बच्चियों के वास्ते 

कुछ निवाले छीन लेते हैं गरीबों से भले 
रोज़ दाना लाएं साहब मछलियों के वास्ते 

देश के रक्षक उगाते बेच कर ईमान अब 
नोट की फसलें सियासी इल्लियों के वास्ते 

दौर है रफ़्तार का, फुर्सत नहीं खुद के लिए 
व्यस्त हैं सब कागज़ी कुछ चिन्दियों के वास्ते 

मुल्क की तस्वीर से फिर साजिशी बू आ रही

खुल रहे स्कूल इंग्लिश हिंदियों के वास्ते


कोख में ही मार डालीं, बाप ने सब बच्चियाँ 
मां तरसती रह गई किलकारियों के वास्ते 

क्यूँ गुनाहों से करे तौबा कोई भी “दीप” जब

बह रही गंगा अजल से पापियों के वास्ते

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by बृजेश नीरज on May 21, 2013 at 9:57am

संदीप भाई बहुत सुन्दर! बधाई आपको!

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 21, 2013 at 9:35am

मुल्क की तस्वीर से फिर साजिशी बू आ रही

खुल रहे स्कूल इंग्लिश हिंदियों के वास्ते

 संदीप जी, वाह अतिसुन्दर बधाई स्वीकार करें

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 21, 2013 at 7:55am

आ0 संदीप भाई जी, वाह! अतिसुन्दर। ’ कोख में ही मार डालीं, बाप ने सब बच्चियाँ
मां तरसती रह गई किलकारियों के वास्ते।’ हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by वीनस केसरी on May 21, 2013 at 12:32am

अच्छी ग़ज़ल हुई है संदीप जी बधाई स्वीकार करें

Comment by Neeraj Nishchal on May 20, 2013 at 7:11pm
Bahut bahut bahut khoobsurat
Comment by Abhinav Arun on May 20, 2013 at 3:35pm

वाह वाह क्या खूब संदीप बढ़िया ग़ज़ल हुई है सामयिक तेवर लिए - यह शेर बहुत पसंद आ रहा है इस हेतु विशेष दाद आपको _

मुल्क की तस्वीर से फिर साजिशी बू आ रही

खुल रहे स्कूल इंग्लिश हिंदियों के वास्ते

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 20, 2013 at 1:29pm

वाह वाह प्रिय मित्रवर मज़ा आ गया क्या बात है जोरदार प्रहार किया है आपने, सभी के सभी अशआर बेहद धारदार बन पड़े हैं मेरी ओर से ढेरों दाद कुबूल फरमाएं.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2013 at 1:20pm

एक ऐसी ग़ज़ल जो कई विन्दुओं पर तो बहुत सटीक है कुछ पर और समय चाहती थी. वैसे निम्नलिखित अश’आर व्यक्तिगत तौर पर बहुत कुछ कहते लगे हैं -

देश के रक्षक उगाते बेच कर ईमान अब 
नोट की फसलें सियासी इल्लियों के वास्ते .. ... सियासी हलकों के कुछ खुसूसी लोगों के लिए इल्लियों का प्रयोग जम गया.

मुल्क की तस्वीर से फिर साजिशी बू आ रही

खुल रहे स्कूल इंग्लिश हिंदियों के वास्ते .. . .

बधाई स्वीकारें, आदरणीय संदीप भाईजी.

Comment by राजेश 'मृदु' on May 20, 2013 at 1:06pm

वाह-वाह फिर से एक सुंदर प्रस्‍तुति, सादर

Comment by Shyam Narain Verma on May 20, 2013 at 12:42pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

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