साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी रीती है मन की गागर
नदिया की तृष्णा हरे कैसे लवणित बूँद -बूँद सागर
अवगुंठित भाव होकर अधीर
गीतों में निरी भरते हैं पीर
विरह कंटक चुभ हिय घाव करें
पीड़ा अँखियन कर जायँ उजागर
साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी रीती है मन की गागर
नदिया की तृष्णा हरे कैसे लवणित बूँद -बूँद सागर
सिसकती गलियाँ पनघट रोता
नीर जमुना के नैना भिगोता ,
श्वास मरीचिका में उलझाये
छल-बल से मोरा नटवर नागर
साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी रीती है मन की गागर
नदिया की तृष्णा हरे कैसे लवणित बूँद -बूँद सागर
संत्रस्त सम्मूढ़ कुंदन किसलय
तज कदम्ब कि डार धूरि में विलय
कर कुंठित कर्ण भरमाय रहा
बाँसुरिया राग तिलस्मी आगर
साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी रीती है मन की गागर
नदिया की तृष्णा हरे कैसे लवणित बूँद -बूँद सागर
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Comment
साथी बिन मन की गागर रीती है, सुन्दर मन के उदगार की काव्य विधा में यह अनोखी रीती है |
और सच पुर्छों तो इसमें छिपी अपने मन की अनुभूति जैसी आप बीती है | भावो को कागर पर उढेल
कर मन को सुन्तुष्टि देने की यह अच्छी निति है | सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी
मनभावन चयन, राज जी।
साधुवाद।
सादर,
विजय निकोर
ब्रजेश नीरव जी आपको ये प्रयास रुचिकर लगा बहुत- बहुत हार्दिक आभार|
प्रिय प्राची आप सही कह रही हैं मात्रा गणना में भी चूक हुई है बहुत जल्दी इस गीत को और वक़्त देकर दुरुस्त करने का प्रयास करुँगी ,हार्दिक आभार|
आदरणीया बहुत ही सुंदर प्रयास है आपका! आपको ढेरों बधाई!
आदरणीया राजेश जी
गीत विधा पर सुन्दर प्रयास..पर गेयता कहीं कहीं बाधित है.
अवगुंठित भाव होकर अधीर
गीतों में नित भरते हैं पीर
विरह कंटक चुभ हिय घाव करें
अँखियाँ निज पीर करें उजागर ...............बहुत मर्मस्पर्शी भाव हैं
साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी रीती है मन की गागर
आप मात्रा गणना को हर पंक्ति में एक समान करने का प्रयत्न कीजिये और शब्द समूहों में थोड़ा सा स्थान परिवर्तन करिये ( सम के तुरंत बाद सम शब्द और विषम के साथ विषम मात्रिक शब्द) फिर देखिये.
संवेदनात्मक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
हार्दिक आभार किशन कुमार जी |
जी सादर आभार :-)))
//गीतों पर प्रयास कर ही रही हूँ आज कल//
वाह ! .. पुनः शुभकामनाएँ
आदरणीय सौरभ जी हार्दिक आभार, आपका परामर्श सर आँखों पर ,गीतों पर प्रयास कर ही रही हूँ आज कल |
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