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मैँ माँ-बाप की
आशाओँ को
पूरा नही कर सकती?
क्या मैँ उनकी कसौटी पर
खरा नहीँ उतर सकती?
सादर प्रणाम
विषय विचारणीय है बेटे बेटी का भेद अभी भी बहुत अभी है गहराया इसे मिटाना है सचमुच सोच बदलनी है
रचना के लिए बधाई
मार्मिक चित्रण ! कब होगा इनका दुःख हरण!
समाज की सोच बदलनी चाहिए,
हर जगह बेटी को समान दर्जा मिलनी चाहिए!
bahut umda aur sateek rachanaa hue hai adarneey abid bhai ji ///hardik badhai
विषय ज्वलंत है , सवाल एक देवदार से कम तने हुए नहीं है और सच यही है कि बेटियां बेटों से हर जगह जब्बर हैं . इन्सानी सोच के इस दीवालीयेपन पर तरस आता है ,कभी-कभी तो यकीन भी नहीं होता कि ये सच है ! सचमुच लोग कन्या भ्रूण का बध करते हैं क्या?आबिद भाई ,पुरजोर तरीके से आपने यह बात रखी . शुक्रिया .
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