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फिर घूँघट की शान बढाता है पल्लू

जीवन में हर रंग दिखाता ये  पल्लू 

सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू 

 गर्मी  में  चेहरे का  पसीना  पौंछता   

सावन में छतरी बन जाता है पल्लू 

 

जब- तब शादी में गठबंधन करवाता  

दो जीवन को एक बनाता ये पल्लू 

झोली बन कर आखत अर्पण करवाता   

फिर घूँघट की शान बढाता है पल्लू  

 

कभी कभी नव शिशु का झूला बन जाता    

आँखों से तिनका चुन लेता  ये  पल्लू   

रोता  बालक  माँ  के पीछे जब दौड़े   

हाथो की ऊँगली बन जाता है  पल्लू 

 

सर ढके जग में संस्कारी कहलाता 

ढल गया तो   कहर बरपाता ये  पल्लू 

छन छन् छन् छन घर की कुंजी छनकाता 

आये आँसू  आँख पौंछता है पल्लू 

 

चाहत में प्रेमी का साहिल बन जाता 

झगड़े  में फंदा  बन जाता ये पल्लू 

भार उठाने सर की टिकड़ी भी बनता 

धोबिन का हंटर  बन जाता है पल्लू   

 

स्वदेशी प्राचीन संस्कृति का द्योतक 

पुरखों की थाती का मानक ये  पल्लू 

जाने अब दुनिया में कैसी हवा बही 

उड़ा ले गई मरी  सिरों से वो  पल्लू  

 

जीवन में हर रंग दिखाता ये  पल्लू 

सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू 

*********************************

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2013 at 8:42pm

प्रवीण मलिक जी रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ 

Comment by Parveen Malik on July 15, 2013 at 8:31pm
राजेश जी .... पल्लू के हर पहलू का बखूबी वर्णन किया .....बहुत सुन्दर बधाई ....

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 14, 2013 at 10:07pm

                        आदरणीय  अरुण कुमार निगम जी इस पल्लू पुराण पर आपकी सराहना से मेरा भी मन झूम गया हार्दिक आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 14, 2013 at 9:38pm

वाह !!!!! पल्लू के हर पहलू को शब्दों के पल्लू में बाँध दिया है, जितनी भी तारीफ की जाये, कम है. बधाई आदरणीया..........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 14, 2013 at 10:53am

आदरणीय सौरभ जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन हर्षित है बहुत बहुत आभार आपका ,जी आपने सही कहा बहुत से पहलु और भी हैं काम करते करते हाथ मुख (केवल अपना ही नहीं ये काम पति देव भी कई बार कर जाते हैं ) पौंछना ,या आपरेशन मजनू से छुपने के लिए प्रेमी युगल का पर्दा बन जाना आदि-आदि  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 14, 2013 at 10:31am

पल्लू के वभिन्न पहलुओं की प्रस्तुतियों पर मन प्रसन्न है, आदरणीया राजेशकुमारीजी .

वैसे एक और पहलू सूचीबद्ध होने से रह गया है  -- काम करते-करते हाथ, चेहरा, मुँहपोंछ लेने के लिए सहज उपलब्ध पोंछना के रूप में !

:-)))))

बहुत-बहुत धन्यवाद इस रचना के लिए.

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 14, 2013 at 10:07am

चन्द्र शेखर पाण्डेय जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया लेखन को सार्थकता प्रदान कर रही है हृदय से आभारी हूँ |

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on July 14, 2013 at 9:24am

पर्दे के श्रृंगारिक व सामाजिक पहलूओं पर सुन्दरता से प्रकाश डालती आपकी यह रचना अकथनीय सुन्दरता से युक्त है। नमन।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 13, 2013 at 2:30pm

प्रिय प्राची जी पल्लू रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से रचना को जो मान मिला उसके लिए दिल से आभारी हूँ पल्लू पुराण तो बहुत लंबा है बस कुछ  ख़ास तत्थ्य ही पेश किये हैं आपको पसंद आये लिखना सार्थक हुआ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 13, 2013 at 2:06pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी 

स्त्री जीवन के साथ चिरसंबद्ध पहलू है ये पल्लू ...इसपर आपने कितनी बढ़िया रिसर्च की है की मन खुश हो गया ये प्रस्तुति पढ़ कर.

बहुत बहुत बधाई

सादर.

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