मिली हैं करवटें औ याद सहर से पहले
पिए हैं इश्क़ के प्याले जो जहर से पहले
जो दिल के खंडहर में अब बहें खारे झरने
यहाँ पे इश्क की बस्ती थी कहर से पहले
ग़ज़ब हैं लोग खुश हैं देख यहाँ का पानी
नदी बहती थी जहाँ एक नहर से पहले
कहाँ उलझा हुआ है गाफ़ अलिफ में अब तक
रदीफ़ो काफिया संभाल बहर से पहले
नहीं आसां है उजालों का सफ़र भी इतना
जले है दीप सारी रात सहर से पहले
संदीप पटेल "दीप"
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
कहाँ उलझा हुआ है गाफ़ अलिफ में अब तक
रदीफ़ो काफिया संभाल बहर से पहले
हा हा हा ... क्या कहने :))))))))))))
नहीं आसां है उजालों का सफ़र भी इतना
जले है दीप सारी रात सहर से पहले ----वाह शानदार मकता ,बढ़िया ग़ज़ल दाद कबूल करें
जय हो, आदरणीय सुंदर गजल पेश की है, सादर
वाह प्रिय मित्रवर वाह क्या कहने बहुत ही सुन्दर लाजवाब लाजवाब लाजवाब
ग़ज़ब हैं लोग खुश हैं देख यहाँ का पानी
नदी बहती थी जहाँ एक नहर से पहले .... वाह इस शेर की गहराई ने लूट लिया भाई जी लूट लिया.
हार्दिक बधाई स्वीकारें.
aadarneey Shijju S. ji saadar prnaam
aapka bahut bahut dhanyvaad
ji haan mujhe bhi lag rhaa hai ab ki eb hai
bahut bahut aabhar aapka sneh yun hi banaye rakhiye
//मिली हैं करवटें औ याद सहर से पहले
पिए हैं इश्क़ के प्याले जो जहर से पहले//
बेहतरीन शेर संदीप जी
आपके ग़ज़लों की कमी खल रही थी संदीप जी, बेहतरीन ग़ज़ल बन पढ़ी है
//जो दिल के खंडहर में अब बहें खारे झरने
यहाँ पे इश्क की बस्ती थी कहर से पहले//
यहाँ कहीं तकाबुले रदीफ़ तो नही हो रहा है.
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