बूढी दादी अपने पोते गोलू को लेकर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में गई . उनको देखकर मास्टर साहब कहने लगे कि आपने इतना कष्ट क्यों किया . दादी जी बोली -गोलू पढ़ेगा इसी विद्यालय में लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा . बस एक ही बात कहने को आयी हूँ कि इसके पिता ने हमें शहीद की माँ होने का गौरव दिया है और इसे उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है .
शुभ्रा शर्मा 'शुभ '
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
फैज़ साहब का एक शेर बड़ी शिद्दत से याद हो आया ....
वो बात सारे फ़साने में जिसका जिक्र न था
वो बात उनको बड़ी नागवार गुजारी है
जब हम अपनी रचना में बिना कहे कोई बात कह जाएँ तो चमत्कार से पाठक को बाँध लेते हैं ... अपने ये चमत्कार इस लघुकथा में करके दिखाया है
तहे दिल से ढेरो मुबारकबाद
बहुत ही कसी हुई सुन्दर संदेशपरक सार्थक लघुकथा
बहुत बहुत बधाई आ० शुभ्रा शर्मा जी
आदरणीय जीतेन्द्र जी , धन्यवाद
आदरणीया शुभ्रा जी
आपने छोटी सी रचना से, बहुत सशक्त सन्देश दिया
बहुत बहुत बधाई
आदरणीय अमन जी , अतिलघु कथा अपने सही रूप में पहुँचा ,धन्यवाद
आदरणीया विनीता जी , बहुत बहुत धन्यवाद
कुछ पंक्तियों में ही, आपने बहुत बड़ी बात कह दी. "देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर" आपकी कथा की ये पंक्तियाँ, इस कसौटी पर बिलकुल खरी उतरती हैं. बधाई एवं साधुवाद.
१ लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा
2 उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है
सारी समस्या को ही आपने अपनी एस कथा से सुलझा दिया है आपका आभार ......
ओ बी ओ परिवार को एक मंच देने ,सही मार्गदर्शन के लिए तहे दिल से मेरा आभार ,
आदरणीय शुभ्रांशु जी , हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद
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