घर के नौकर छोटू ने नेता जी को सूचना दी, "मालिक मालिक, कुछ लोग आप से मिलने आए हैं "
"तुम उन लोगो को बरामदे मे बिठाओ, शरबत-पानी पिलाओ, मैं तैयार होकर आता हूँ "
नेता जी तैयार होकर निकलने ही वाले थे कि उनकी नज़र छोटू पर पड़ी, "अरे.. ये स्टील के गिलासों में क्या लेकर जा रहा है, रे.. ! "
"मालिक शरबत है, आपने ही कहा था न !"
"पगलाया है का..? " नेता जी उसपर गरजे, "शरबत स्टील के गिलासों मे क्यों लेकर जा रहा है ? दिखता नहीं, वो लोग दूसरे धर्म के हैं ?.. वहाँ आलमारी में शीशे के गिलास पड़ें होंगे, ले जा उस में.. . "
Comment
आदरणीय भ्राताश्री मन के भीतर उत्पन्न हो रहे जाति धर्मं भेद भाव ऊँच नींच का सुन्दर चित्रण आदरणीय भाई जी सत्य एवं सटीक लघु कथा हार्दिक बधाई स्वीकारें
ओह! दिल में बहुत दूर तक असर कर रही यह लघु कथा, सत्य है ऐसे ही हैं आजकल के धर्मनिर्पेक्ष.
हमारे दोहरे चरित्र पर करारा व्यंग्य ! बधाई !
जाति के नाम पर फूट डाल कर राज करने वाली नीति, राजनीती का भंडाफोड करती लघु कथा बहुत सशक्त
सत्य आधारित लघु कथा के लिए आपको साधुबाद बागी जी |सच तो यही है नेताओ के लिए सब कुछ वोट आधारित होता है उपयोगितावाद का सच्चा उद्धरण होते है ये लोग |....
आभार ....
आदरणीय गणेश जी
साम्प्रदायिकता के इस चुभते हुए स्वरुप को आपने बहुत सुंदरता से लघुकथा में शब्दबद्ध किया है..
बहुत बहुत बधाई
बढ़िया अभिव्यक्ति-
बधाई आदरणीय-बागी जी-
अब तो धर्म शांति पाने का नही बल्कि सत्ता और लोकप्रियता पाने का ज़रिया बन गया है, अपने आप को बदले बिना सभी अपना स्वार्थ साधने में लगें हैं, आज के इन तथाकथित धर्म निरपेक्ष नेताओं की काली सच्चाई को उजागर करती इस लघुकथा के लिए आपको बधाई. और आपने जिस तरह एक विषय के अलग अलग पहलुओं को अपनी लघुकथाओं के ज़रिए सामने रखा है उसके लिए दिली दाद काबुल करें.
आदरनीय बागी जी ..कितना बड़ा सन्देश छिपा है आपकी रचना में ...हर आदमी ने अपने फायदे के लिए तमाम कुछ किया पर अपने अंतर को बदलने की चेष्टा कभी नहीं की ..जब तक अंतर साफ़ नहीं होगा तब तक किसी बात का कोई फायदा नहीं होगा ..आपको ढेरो बधाई के साथ
दर हकीकत है खांटी और सौ फ़ीसदी ... ऐसे सामाजिक सच सामने आने ही चाहिए श्री बागी जी , तभी इनका अनुकरण करने वालों की आँखें खुलेंगी | हमने भी बचपन में गाँव में ऐसी स्थितियों का महूब स्मरण है ... पर समय बदला है और सोच भी पर बहुतेरे अब भी बीती सदी में जे रहे हैं ... आपने लघु कतः के ज़रिये महती दायित्व का निर्वाह किया है बखूबी ..सशक्त कटाक्ष करती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई !!
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