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रोज स्कूल जाते समय पीछा करते आखिर आज असलम ने लता का हाथ रस्ते में पकड़ने की हिमाकत कर ही डाली!!!!!!!!!!!
लता सकपका गई। कातर निगाहों से वो इधर उधर देखने लगी। आने जाने वालों की खामोश नज़रें असलम के खौफ को साफ बयां कर रही थी !
तभी एक पुलिसवाले की नज़र उन पर पड़ी। उसने तत्काल लता को असलम से छुड़वाया और उसे  थाने  में उठा लाया। बयां देने के लिए लता को भी जाना पड़ा। 
कार्यवाही जारी थी  …… 
लता के मन में असलम और उसके समाज  के प्रति घृणा और वितृष्णा के पहाड़ अपनी उचाईयां नापने लगे। देखते ही देखते उसके मन में ऐसे ही कई पहाड़ स्थापित हो गए !
"तड़ाक "! !
एक चांटे की आवाज ने लता की तन्द्रा भंग कर दी !
पुलिस थाने में पहुंची असलम की माँ ने एक जोरदार तमाचा असलम के गालों पे जड़ दिया। 
"थानेदार साब इस नामुराद को लाकअप में डाल दीजिये। जो किसी लड़की का सरे राह अपमान करे  वो मेरा बेटा  हो ही नहीं सकता "
फिर पलट के उसने लता के सामने हाथ जोड़ लिए। 
लता के मन में स्थापित सारे  पहाड़ पिघलने लगे थे   …… 
---------------------------------------------------------------------------------
अविनाश बागडे (मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by AVINASH S BAGDE on September 3, 2013 at 8:31pm

"यदि हर अपराधी  की माँ ऐसी होने लगे तो अपराध  जड़ से समाप्त होते देर नहीं लगेगी"

 अनुपमा जी /एकदम सही कहा आपने /आभार 

Comment by AVINASH S BAGDE on September 3, 2013 at 8:29pm

 "जितनी बुराई है उतनी अच्छाई  भी है इसी दुनिया में "..sahi bat hai श्याम जुनेजा sir.

Comment by AVINASH S BAGDE on September 3, 2013 at 8:28pm
Comment by AVINASH S BAGDE on September 3, 2013 at 8:27pm

"अगर घर से सही शिक्षा मिले तो ..........

समाज मे अपराध न हो , "......bilkul Aman Kumar ji

Comment by AVINASH S BAGDE on September 3, 2013 at 8:27pm

ऐसे अपराघियों का पारिवारिक बहिष्कार बहुत जरूरी है..ji Meena ji ....100% sahamat hu..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 3, 2013 at 8:01pm

इस लघु कथा के माध्यम से समाज को सुन्दर सन्देश जाएगा | बहुत बहुत बधाई स्वीकारे श्री अविनाश बागडे जी 

Comment by Shubhranshu Pandey on September 3, 2013 at 6:40pm

आदरणीय अविनाश जी. उस थप्पड़ की गूँज दूर तक सुनाइ दे रही है....

सादर.

Comment by विजय मिश्र on September 3, 2013 at 5:37pm
यह कथा अति महत्वपूर्ण सन्देश लिये हुए है और उस कृत्रिम अवधारणा का सीधा काट भी जीसका निर्माण समाज में तीव्रता से किया जा रहा है अपने-अपने क्षुद्र हितों के लिए.सार्थक सृजन .साधुवाद और आदर अविनाशजी .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 3, 2013 at 5:00pm

आदरणीय अविनाश जी 

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर लघु-कथा पर..

एक इंसान की हरकत देख पूरे समुदाय के लिए वैसा ही सोचना ठीक नहीं.. कई-कई ऐसे अपराध सिर्फ वैयक्तिक मानसिकता पर ही निर्भर करते हैं ... जो एक तरह के मनोवैज्ञानिक रोग ही होते हैं.

सुन्दर सन्देश दिया है...

हार्दिक बधाई 

....लेकिन अभी भी शिल्प को काफी और कसा जा सकता है, जिस पर विशेषज्ञ ही अपनी महत्वपूर्ण राय दे सबको सीखने का अवसर प्रदान कर सकते हैं.

सादर.

Comment by annapurna bajpai on September 3, 2013 at 4:01pm

आ० बागड़े जी बहुत अच्छी लगहु कथा , यदि हर अपराधी  की माँ ऐसी होने लगे तो अपराध  जड़ से समाप्त होते देर नहीं लगेगी । 

कृपया ध्यान दे...

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