नव गीत
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आ चल फिर बच्चे हो जायें
खेलें कूदे मौज मनायें
बिन कारण ही,
रोयें गायें , हँसे हँसायें,
आ चल फिर बच्चे हो जायें !
मेरी कमीज़ है गन्दी तो क्या
तू कुछ उजला उजला तो क्या
मिट्टी मे खेलें,
धूल उड़ायें ,
चल हम सब गन्दे हो जायें
आ चल फिर बच्चे हो जायें !!
मै दौड़ूं तू पीछे आये
मुझे धकेले और गिराये
चोट लगे मुझको, मै रो दूँ
तू डर जाये ,
दौड़े दौड़े पास मे आये
मै उठ न पाउँ,
मुझे उठाये ,
घर पहुंचाये ,
मात- पिता की गाली खायें
आ चल फिर बच्चे हो जायें !!!
फिर दूजे दिन,
कल को भूलूँ ,
रस्ता देखूँ ,
कि तू आये , मुझे मनाये
मै मानूँ , फिर भागे दौड़ें
फिर मुझे गिराये ,
और उठा के घर पहुँचाये
आ चल फिर बच्चे हो जायें !!!!
मौलिक एवँ अ प्रकाशित
Comment
मै उठ न पाउँ,
मुझे उठाये ,
घर पहुंचाये ,
मात- पिता की गाली खायें
आ चल फिर बच्चे हो जायें !!!
आ फिर लौट चलें ....कोई लौटा दे मेरा गुजरा हुआ कल वो प्यारा बचपन ...सुन्दर चित्रण ....गिरिराज जी
बधाई
भ्रमर ५
सर जी,
आप ऊँगली लगा कर हमें भी हमारे बचपन में ले गए -धन्यवाद
आदरणीया आन्नपूर्णा जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार !!
अरविन्द भाई , रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
आदरणीय आशीष भाई , उत्साह वर्धन के लिये दिली आभार !!
आदरणीय भण्डारी जी बहुत सुंदर प्यारा सा नवगीत बचपन मे पहुंचा दिया , बहुत बधाई आपको ।
राम शिरोमणी भाई ,आपका हार्दिक आभार !!
हार्दिक बधाई , सुन्दर रचना हेतु
सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी ,अपने तो मुझे बचपन की याद दिल दी //सादर बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ
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