याद है !!
जब तुम्हारा जन्म हुआ था
एक नर्म तौलिये में लपेट
मुझे तुम्हारी एक
झलक दिखलाई थी
तुम्हे देखते ही
भूल गयी थी दर्द सारा
खों गयी थी
गुलाब की पंखुड़ियों जैसी सूरत में
कितना प्यारा था स्पर्श तुम्हारा
नर्म
बिलकुल रुई के फाहों जैसा
खुश थी छू के तुम्हे
तुम मद मस्त नींद में
लग रहा था
लम्बा सफ़र तय किया है तुमने
कितने दिनों के थके हो जैसे
जब तुमने
आँखें खोली पहली बार
इस नयी दुनिया को देखने की कोशिश
तुम्हारी काली चमकदार आँखें
ढूंढ रही थीं कुछ
मै हर्षित देख रही थी
तुम्हे आँखें घुमाते हुए
जब तुमने
अपना सिर घुमा के
करीब देखा मुझे
एक हल्की मुस्कान के साथ
आँखे बंद कर के सो गये
जैसे तुमने पा लिया था उसे
जिसे ढूंढ रहे थे
मै तुम्हे नींद में मुस्कुराते देख
ऐसे तृप्त हो गयी थी जैसे
बंजर जमीन हो गई हो हरी-भरी
पतझड़ के बाद आ गयी हो बसंत ऋतु
पड़ी हो सूखी धरती पर बरखा की फुहार
आँचल से फूट पड़ी ममता की धार
तुम्हे अपने आँचल से ढक
कलेजे से लगा कर
मै भी सो गई थी !!....
आज तेरी छवि है मेरे सामने
पर कलेजे से लगाने को तरसती हूँ
आँखों में आँसूओं का समंदर,
हृदय में ममता की लहरें
दूर तु मुझसे और मै तुझसे
मिलेगा कभी ना कभी
यही आस,
यही उम्मीद लिए बैठी हूँ ||!!!
मीना पाठक
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया प्रियंका जी
बहुत ही सुन्दर और मनोहारी रचना अद्भुत दृश्य आँखों के सामने आ गया ...........अंत पीड़ा से भरा हुआ
बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
बहुत बढ़िया आदरेया-
शुभकामनायें-
मैया ताकत दूर तक, पर आवत नहिं पूत |
काया की ताकत ख़तम, आजा अब आहूत ||
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... |
मै तुम्हे नींद में मुस्कुराते देख
ऐसे तृप्त हो गयी थी जैसे
बंजर जमीन हो गई हो हरी-भरी
पतझड़ के बाद आ गयी हो बसंत ऋतु
पड़ी हो सूखी धरती पर बरखा की फुहार
आँचल से फूट पड़ी ममता की धार
तुम्हे अपने आँचल से ढक
कलेजे से लगा कर
मै भी सो गई थी !!....
अति सुन्दर ममतामयी भाव , बधाई स्वीकार करें आदरणीय मीना जी
आदरणीया मीना जी , आपने अपनी कविता में माँ की ममता को उड़ेल कर रख दी है , बहुत बहुत बधाई
बहुत बहुत आभार आ० गीत जी
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