आयशा की हिंचकियाँ अबतक बेतहाशा बढ़ गयी थीं |
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
आदरणीय भ्राताश्री आज की सच्चाई को बहुत ही बारीकी से दर्शाया है आपने लघुकथा का प्रस्तुतीकरण भी बेजोड़ है. इस सुन्दर सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
वास्तविकता के करीब-
शुभकामनायें आदरणीय-
आदरणीय गणेश सर सादर प्रणाम
बहुत ही समसामयिक विषय पर श्रेष्ठतम सृजन किया है आपने
ग़ज़ब
इस सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई हो
आज की सच्चाई को बेनकाब करती लघु कथा ,आधुनिकता की होड़ में कितना कुछ गँवा बैठती हैं होश पहले ही क्यों नहीं आता ,आज जो हो रहा है उसमे एसी आधुनिकता ही ज्यादा पिसती नजर आ रही है ,उस बिंदु पर अच्छा प्रहार करती हुई लघु कथा अपना सन्देश छोड़ने में पूर्णतः सक्षम बहुत बहुत बधाई आदरणीय गणेश बागी जी
आदरणीय शुभ्रांशु जी की प्रतिक्रिया से सहमत हूँ, बहुत बढ़िया लघुकथा, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय गणेश जी
आदरणीय गणेश भैया,
एक सशक्त कथा, इस कहानी में कई आयामों को एक सुन्दर तरीके से जोडा़ गया है.
युवाओं का गैजेट प्रेम, बडे कालेज का नाम, हास्टल का जीवन, अधुनिकता का दंभ और खतरे की आशंका...
इन सब ने मिलाकर एक मजबूत आधार दिया है, इस कथा को.
ये सच है कि महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है, लेकिन इस स्थिति के परिप्रेक्ष्य में स्वयं महिलाओं का रोल क्या है? बात थोडी़ कड़वी है. लेकिन ध्यान देने योग्य हैं... जिस पर आपकी कथा ने ध्यान आकृष्ट किया है.
सादर.
आदरणीय गणेश जी, सावधान रहने का इशारा करती हुई आपकी लघुकथा सर्वकालिक भी है और सामयिक भी !! आपको हार्दिक बधाई !!
आभार आदरणीया गीतिका जी ।
आज के समय के संदर्भ में सचेत करती हुयी कथा|
बहुत बहुत शुभकामनायें !!
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