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सेमीनार में “कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न” विषय पर अपना भाषण देकर जब प्रिंसीपल साहिब स्टेज से उतरे तो सभी ओर तालियों की गड़गड़ाहट व वाहवाही गूंज रही थी,  सभी लोग बारी-बारी प्रिंसीपल साहिब को बधाईयां दे रहे थे। इसी क्रम में जब एक जूनियर अध्यापिका ने प्रिंसीपल साहिब को बधाई दी तो उन्हे लगा जैसे किसी ने सरे-बाजार उन्हे नंगा कर दिया हो।

- मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2013 at 7:13pm

रवि प्रभाकर जी चंद शब्दों में आपने एक कुत्सित मानसिकता की कलई खोल दी ,बिना कहे बहुत कुछ कह गई लघु कथा ,अपना सन्देश देने में रचना पूर्णतः सक्षम है बहुत बहुत बधाई आपको 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 4, 2013 at 6:33pm

भाई रवि जी, आपकी लघुकथा पर सुधिजनो ने पहले ही बहुत कुछ कह दिया है, मैं तो केवल एक बात कहना चाहूँगा कि इस विधा को लेकर आपके सारे कॉन्सेप्ट्स बेहद क्रिस्टल क्लियर हैं. आपकी लघुकथा इस बात की साक्षी है, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें. 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 4, 2013 at 4:04pm

वाह ...लाजबाब लघु कथा ..सादर बधाई के साथ 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 4, 2013 at 12:31pm

आदरणीय सर जी वाह बहुत ही बेहतरीन लघुकथा बिना पर्दा उठाये ही आपने पर्दे के पीछे रखी वस्तु दिखा दी. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on October 4, 2013 at 9:01am

हा,हा,हा,......बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 7:40am

हा..हा..... बेहद सुंदर लघुकथा है आदरणीय रवि जी... बधाई हो....

Comment by Meena Pathak on October 4, 2013 at 1:49am

आईने में अपना चेहरा दिख गया प्रिंसिपल साहब को .......बहुत सुन्दर लघुकथा, बधाई आप को 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 4, 2013 at 12:25am

एक अरसे बाद अपने अनुज रवि प्रभाकरजी को मंच पर देखना एक सुखद अनुभूति है. इस उपस्थिति पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.

लघुकथा के लिहाज़ पर इस दमदार तरीके से भाई रविजी को कहते सुनना-पढ़ना रोमांचित कर गया. क्या लघुकथा की सटीक बानग़ी है ! जो कहा वो तो सबके सामने है. मग़र जो न कहा वो ज्यादा सामने है, कुरेदता हुआ.

कथ्य की कसावट और शब्दों के मितव्ययी प्रयोग के बावज़ूद तथ्यों का सटीक संप्रेषण लघुकथाओं का मूल गुण होता है. इस सैद्धांतिकता का इतना सुन्दर निर्वहन इस कथा को सार्थक कर गया है.

दिल से बधाई स्वीकारें, अनन्य अनुज रविजी.
और मंच पर मौज़ूदग़ी बनाये रखें.
शुभ-शुभ

Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 9:11pm

आ0 रवि प्रभाकर जी इस सदेश युक्त  लघु कथा हेतु बधाई आपको । 

Comment by Abhinav Arun on October 3, 2013 at 8:13pm

अच्छी लघुकथा ... जो नहीं लिखा वह भी आसानी से समझ में आ रहा है ..अपने सन्देश के साथ इसके लिए विशेष बधाई आपको !!

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