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सफ़र

ओ बी ओ के संग मेरा, सफ़र पुराना भाई,

जानते नहीं जो मुझे, जान लो क़रीब से।

धन औ दौलत से भी, बड़ी चीज़ पाई मैंने,

शारदे की कृपा मिली, मुझको नसीब से।

लेखन में रुचि मेरी, लेखन ही जान मेरी,

लेखन है प्रिय मुझे, अपने हबीब से।

जियूँ तो कलम हाथ, मरूँ तो कलम साथ,

मानना हे प्रभु यह, विनती ग़रीब से।

----------------------------------- सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by रविकर on October 5, 2013 at 6:04pm

शत प्रतिशत सहमत , आपसे हूँ बंधुवर
ओ बी ओ ने सिखाया है, हमें भी कविताई ||

शुभकामनायें आदरणीय

Comment by Sushil.Joshi on October 5, 2013 at 2:10pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सचिन भाई जी...

Comment by Sushil.Joshi on October 5, 2013 at 2:10pm

मेरी कृति पर अपना आशीष बरसाने के लिए आपका अतिश: धन्यवाद आदरणीय गिरिराज भंडारी जी...

Comment by Sushil.Joshi on October 5, 2013 at 2:09pm

आपकी स्नहिल टिप्पणियाँ मेरा प्रोत्साहन हैं आदरणीया राजेश कुमारी जी.... सादर धन्यवाद

Comment by Sushil.Joshi on October 5, 2013 at 2:08pm

स्नेह के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी...

Comment by Sushil.Joshi on October 5, 2013 at 2:07pm

बहुत बहुत धन्यवाद आपका आदरणीया अन्नपूर्णा जी....

Comment by Sachin Dev on October 5, 2013 at 1:55pm

बहुत अच्छे से लेखन के प्रति अपनी रूचि को व्यक्त किया है आपने भाई सुशील जी .... बधाई ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 5, 2013 at 11:11am
आदरणीय सुशील भाई , इस रचना के बाद कौन आपको भूल सकेगा ?सुन्दर रचना के लिये बहुत बधाई !!!!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2013 at 10:59am

वाह्ह्ह्हह इससे बढ़िया परिचय और क्या होगा ,सादर |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2013 at 12:21am

वाह ! बहुत सुन्दर आत्म-परिचय बन पड़ा है, आदरणीय !

सादर

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