दर्द रह-रह के बढ़ता है
और दिल डूबा जाता है
नब्ज़ थम-थम के चलती है
दिल ज़ोरों से धड़कता है
बीमारी बढती जाती है
फ़िक्र है खाए जाती है
सलाहें खूब मिलती हैं
दवाएं बदलती जाती हैं
दुआएं काम नही आतीं
करें क्या ऐसे में हमदम
कहाँ से चारागर पायें
मत्था किस दर पर टेंकें
कहाँ से तावीजें लायें
तुम्हे मालुम है फिर भी
छुपा कर रक्खे हो नुस्खे
न लो अब और इम्तेहाँ
चले आओ जहां हो तुम
तुम्हारे आते ही हमदम
बिमारी भाग जायेगी........
(maulik aprakashit)
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दर्द रह-रह के बढ़ता है
और दिल डूबा जाता है
तुम्हारे आते ही हमदम
बिमारी भाग जायेगी....... दर्दे दिल की दास्ताँ पर सुन्दर विचार मंथन हुआ है ! बधाई एवं शुभकामनाए अनवर साहब
मनोभावों की यथा प्रस्तुति...
शुभकामनाएं
वाह वाह क्या बात है ...............एकदम सहज प्रस्तुति है बधाई हो
बहुत ही बढ़िया भाई जी थोडा और उतार चढाव होता तो आनंद आ जाता खैर इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.
भाव बहुत सुन्दर है ! थोडा सा शब्दों का चयन अगर और कसके किया होता तो गजब ढा देते ! बधाई आपको
थोड़ी सपाट बयानी हो गई है आदरणीय, इस अभिव्यक्ति पर बधाई ।
बहुत सुंदर, बधाई आदरणीय अनवर साहब
छुपा कर रक्खे हो नुस्खे --
खुबसूरत -
आभार आदरणीय-
अनवर भाई !! बहुत सुन्दर !!! बधाई !!
हा...हा...हा.... वाह वाह.... सही कहा आपने आदरणीय अनवर भाई.... अनेक बीमारियों का एक इलाज.... अपने प्रियतम से मिलना.... कई रोगों को ठीक कर देता है... हा..हा...... बधाई हो....
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