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गीत (दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ)

गीत (दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ)

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ, कोशिशें करके इनको घटा दीजिए,

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

 

कहना चाहते हो गर तुम तो खुल के कहो,

वरना रिश्ता ये बदनाम हो जाएगा,

लाख चाहो छुपाना ज़माने से पर,

एक दिन ये सरेआम हो जाएगा,

सुबह की चाय में घोलकर प्यार को, थोड़ी - थोड़ी सी सबको पिला दीजिए,

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ......

 

फेरना ना निगाहें हमें देखकर,

रूठ बैठे हो हमसे क्या काफी नहीं,

गल्तियाँ हो ही जाती हैं इन्सान से,

ऐसा भी क्या हमें कोई माफी नहीं,

मन तुम्हारा अगर हमसे चोटिल हुआ, उसमें यादों का मरहम लगा दीजिए,
एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ......

 

याद है एक दिन आप हमको मिले,

गालों पर मोतियों की थी बिखरी लड़ी,

बादलों ने उकेरी जो तेरी छवि,

आँसू बरसे वहाँ से भी बनके झड़ी,

इस उफनती नदी को मेरी आँख के, गहरे सागर में लाकर समा दीजिए,

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ......

.

सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1034

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Comment by Sushil.Joshi on October 7, 2013 at 9:05pm

आपके आशीर्ववचनों के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी...

Comment by Sushil.Joshi on October 7, 2013 at 9:05pm

गीत को पसंद कर अपनी अनमोल टिप्पणी से मेरी हौसलअफज़ाही करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया गीतिका जी....

Comment by बृजेश नीरज on October 7, 2013 at 8:16pm

बहुत ही सुन्दर गीत है. आदरणीया प्राची जी के कहे पर ध्यान दें. आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 7, 2013 at 7:52pm

आ० सुशील जी 

बहुत सुन्दर प्रवाहमय मनुहार...

रुठे साथी को इस सुन्दर अंदाज से मनाना बहुत पसंद आया. भावनाएं भी जैसे स्वतः ही बह निकली हैं...बहुत सुन्दर 

शिल्प की दृष्टी से सिर्फ एक बात कहना चाहूंगी की गीतों में मात्रिकता के प्रति थोड़ी सी संवेदनशीलता प्रवाह को बिलकुल साध देती है.. इस कसौटी पर कुछ पंक्तियों को कसे जानी की ज़रुरत महसूस हुई..

सादर शुभकामनाएं 

Comment by Savitri Rathore on October 7, 2013 at 7:14pm

अत्यंत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी गीत !

Comment by coontee mukerji on October 7, 2013 at 3:32pm

याद है एक दिन आप हमको मिले,

गालों पर मोतियों की थी बिखरी लड़ी,

बादलों ने उकेरी जो तेरी छवि,

आँसू बरसे वहाँ से भी बनके झड़ी,

इस उफनती नदी को मेरी आँख के, गहरे सागर में लाकर समा दीजिए,

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ.........मन को छु देने वाला भाव ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 7, 2013 at 9:15am

आदरणीय सुशील जी,

इस मधुर प्रवाहमय गीत के लिये हृदय से बधाइयाँ.........

कहना चाहते हो गर तुम तो खुल के कहो,

वरना रिश्ता ये बदनाम हो जाएगा,

लाख चाहो छुपाना ज़माने से पर,

एक दिन ये सरेआम हो जाएगा,

सुबह की चाय में घोलकर प्यार को, थोड़ी - थोड़ी सी सबको पिला दीजिए,

अद्भुत और प्यारी-सी कल्पना मन को छू गई, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 10:22pm

आदरणीय सुशील भाई जी वाह बहुत ही सुन्दर गीत रचा है प्रेम रस से सराबोर बेहद सुन्दर पंक्तियाँ बहुत बहुत बधाई स्वीकारें

Comment by MAHIMA SHREE on October 6, 2013 at 6:39pm

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए... वाह बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति बधाई आपको

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 6, 2013 at 3:40pm

बड़े भाई साहब बहुत बड़ा प्रभाव छोड़ गया ये गीत ! वाह क्या खूब लिखा है ! दिलसे दाद स्वीकार करें !

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