For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - रुक जाते हैं चलते रेले - पूनम शुक्ला

2222. 2222

हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है

तुम हो आगे हम हैं पीछे
ऐसा तो अक्सर होता है

इक लय में गाते जब दोनों
हर इक आखर तर होता है

होती खाली तू तू मैं मैं
वो भी कोई घर होता है

बन जाता है जो रेतीला
वो भी तो पत्थर होता है

रुक जाते हैं चलते रेले
देखा तेरा दर होता है

तू ही जाने किस गरदन पर
जाने किसका सर होता है

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 11:46pm

पूनमजी, आपकी ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद.  ग़ज़ल पर देर से आ पा रहा हूँ. लेकिन मन खुश हो गया.

आपने फेलुन फेलुन.. फा का वज़्न लिया है. परिपाटियों के अनुसार ग़ाफ़ की संख्या विषम यानि फूट की रखी जाती है.

बधाई

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 2:05am

बहुत शानदार ग़ज़ल कही है
ढेरो दाद

हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है .... अच्छा मतला हुआ है

बन जाता है जो रेतीला
वो भी तो पत्थर होता है........ बहुत कुछ कहता हुआ शेर है ,,, बहुत खूब 

रुक जाते हैं चलते रेले
देखा तेरा दर होता है .......... बहुत अच्छे से निभाया

तू ही जाने किस गरदन पर
जाने किसका सर होता है ........... लाजवाब ,,, कमाल का शेर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 9, 2013 at 2:47pm

इक लय में गाते जब दोनों
हर इक आखर तर होता है..............बहुत सुन्दर शेर 

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 9, 2013 at 8:25am

आदरणीया पूनम जी ... कुछ मिसरे सचमुच आंदोलित कर रहे हैं ..! बढ़िया ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद :)

Comment by vandana on October 9, 2013 at 6:55am

आदरणीया पूनम जी हार्दिक बधाई इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए 

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 5:12am

इस सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई हो आदरणीया पूनम जी.....

Comment by कल्पना रामानी on October 8, 2013 at 11:06pm

पूनम जी, सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई

Comment by annapurna bajpai on October 8, 2013 at 6:30pm

अ0 पूनम शुक्ल जी खूबसूरत गजल हुई है बहुत बधाई आपको । 

Comment by नादिर ख़ान on October 8, 2013 at 5:54pm

हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है

तुम हो आगे हम हैं पीछे
ऐसा तो अक्सर होता है

होती खाली तू तू मैं मैं
वो भी कोई घर होता है

पूनम जी, अच्छी गज़ल के लिए बहुत बधायी .....

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 8, 2013 at 5:41pm

छॊटी बह्र में कमाल की गज़ल कही है,,,,बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service