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वो मेरी रूह मसल देता है
साँस लेने में दखल देता है
जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है
राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है
मैं उसे रोज़ दुवायें देती
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है
उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह शानदार .. बधाई आपको
वाह आदरणीया बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
मैं उसे रोज़ दुवायें देती ( मैं उसे रोज दुआ देती हूँ यदि ऐसा कहें तो)
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है
मैं उसे रोज़ दुवायें देती
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है
...सुन्दर शेरो से सजी सशक्त ग़ज़ल हार्दिक बधाई आपको !!
उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है,,,, वाह वाह वाह
दिली दाद संजु जी!
आ0 संजु जी बहुत बढ़िया गजल हुई है बहुत बधाई स्वीकारें ॰
राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है....... वाह वाह.... क्या खूब कहा.... बधाई आदरणीया संजू जी.....
आदरणीया संजू जी, वाह! बहुत खूब...! बधार्इ स्वीकारें। सादर"
आदरणीय संजू जी बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने , बहुत बहुत बधाई !!!!
जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है ---------- वाह वा !!!! दाद कुबूल करें!!!!
( चौथे शेर का अर्थ स्पष्ट नही है )
बहुत सुन्दर भाव हैं, बधाई आदरणीया संजू जी।
बहुत सुन्दर.
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