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वो मेरी रूह मसल देता है
साँस लेने में दखल देता है
जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है
राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है
मैं उसे रोज़ दुवायें देती
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है
उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है --------आदतन
राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है -----वाह्ह्ह्हह लाजबाब शेर
वो सरेआम गुनाहें करता
फिर सरेराह निकल देता है -----सानी समझ नहीं आया
बहुत सुन्दर प्रयास है संजू जी दाद कबूलें
आदरणीया संजू जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल बनाई है आपने । इतने कम शब्दों में और इतने सरल शब्दों में बहुत गहरी बात कह दिया आपने । मेरी बहुत-बहुत बधाई आपको ।
waah waah waah ....उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है ... bahut khoob ... badhai Sanju ji
//जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है // वाह संजूजी बहुत खूब दाद कुबूल करें
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