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गज़ल -साँस लेने में दखल देता है

2 1 2 2  1 1 2 2   2 2

वो मेरी रूह मसल देता है
साँस लेने में दखल देता है

जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है

राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है

मैं  उसे रोज़ दुवायें देती
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है


उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2013 at 12:03pm

जाने आदत भी लगी क्या उसको 
खुद की ही बात बदल देता है --------आदतन 

राज़ की बात उसे मत कहना 
बाद में राज़ उगल देता है -----वाह्ह्ह्हह लाजबाब शेर 

वो सरेआम गुनाहें करता 
फिर सरेराह निकल देता है -----सानी समझ नहीं आया 

बहुत सुन्दर प्रयास है संजू जी दाद कबूलें 

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 9, 2013 at 11:40am


  आदरणीया  संजू जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल बनाई है आपने । इतने कम शब्दों में और इतने सरल शब्दों में बहुत गहरी बात कह दिया आपने । मेरी बहुत-बहुत बधाई आपको । 

Comment by Pradeep Kumar Shukla on October 9, 2013 at 11:28am

waah waah waah ....उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है  ... bahut khoob ... badhai Sanju ji


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 9, 2013 at 9:56am

//जाने आदत भी लगी क्या उसको 
खुद की ही बात बदल देता है // वाह संजूजी बहुत खूब दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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