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बचपन तब का और था, अब का बचपन और

(1)

बचपन तब का और था, अब का बचपन और |
दादी की गोदी मिली, नानी हाथों कौर |


नानी हाथों कौर, दौर वह मस्ती वाला |
लेकिन बचपन आज, निकाले स्वयं दिवाला |


आया की है गोद, भोग पैकट में छप्पन |
कंप्यूटर के गेम, कैद में बीते बचपन ||

(2)

संशोधित रूप-

तब का बचपन और था, अब का बचपन और |
तब दादी गोदी मिली, नानी से दो कौर |

नानी से दो कौर, दौर वह मस्ती वाला |
लेकिन बचपन आज, महज दिखता दो साला | |

भोजन डिब्बा बंद, अक्श आया में रब का | |
कंप्यूटर में कैद, अधिकतर अबका तबका ||

....

एक दोहे में एक लघुकथा 

दौरे दिल का दर्द इत, उत दौरे पर पूत |
सुतके दौरे बेधड़क, *पिउ बे-धड़कन *सूत ||

*पिता
*सो गया

.

मौलिक / अप्रकाशित

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Comment

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Comment by coontee mukerji on October 9, 2013 at 12:21pm

खूब कहा आपने रविकर जी, बेचारा बचपन करे भी तो क्या करे.

Comment by Pradeep Kumar Shukla on October 9, 2013 at 11:39am

sach hi kaha aapne bachpan ke bare mein aadarniy ... aur aapke akhiri dohe mein kaafi dard jhalak raha hai ... 'बे-धड़कन' ka khoobsoorat prayog

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 9, 2013 at 11:29am


      दोनों दौर के बचपन का  बहुत बढ़िया तुलनात्मक  चित्रण किया  है आपने आदरणीय रविकर जी । और दो पंक्ति के दोहे में तो आपने कमल ही कर दिया है । मेरी बधाई स्वीकारें । 

Comment by रविकर on October 9, 2013 at 10:12am

आभार आदरणीय-शिज्जू जी-


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 9, 2013 at 10:06am

वाकई आदरणीय रविकर सर वो बचपन और था ये बचपन और, बहुत खूबसूरत प्रवाहमय और आज की सच्चाई का वर्णन,  दिली दाद कुबूल करें

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