(1)
बचपन तब का और था, अब का बचपन और |
दादी की गोदी मिली, नानी हाथों कौर |
नानी हाथों कौर, दौर वह मस्ती वाला |
लेकिन बचपन आज, निकाले स्वयं दिवाला |
आया की है गोद, भोग पैकट में छप्पन |
कंप्यूटर के गेम, कैद में बीते बचपन ||
(2)
संशोधित रूप-
तब का बचपन और था, अब का बचपन और |
तब दादी गोदी मिली, नानी से दो कौर |
नानी से दो कौर, दौर वह मस्ती वाला |
लेकिन बचपन आज, महज दिखता दो साला | |
भोजन डिब्बा बंद, अक्श आया में रब का | |
कंप्यूटर में कैद, अधिकतर अबका तबका ||
....
एक दोहे में एक लघुकथा
दौरे दिल का दर्द इत, उत दौरे पर पूत |
सुतके दौरे बेधड़क, *पिउ बे-धड़कन *सूत ||
*पिता
*सो गया
.
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
खूब कहा आपने रविकर जी, बेचारा बचपन करे भी तो क्या करे.
sach hi kaha aapne bachpan ke bare mein aadarniy ... aur aapke akhiri dohe mein kaafi dard jhalak raha hai ... 'बे-धड़कन' ka khoobsoorat prayog
दोनों दौर के बचपन का बहुत बढ़िया तुलनात्मक चित्रण किया है आपने आदरणीय रविकर जी । और दो पंक्ति के दोहे में तो आपने कमल ही कर दिया है । मेरी बधाई स्वीकारें ।
आभार आदरणीय-शिज्जू जी-
वाकई आदरणीय रविकर सर वो बचपन और था ये बचपन और, बहुत खूबसूरत प्रवाहमय और आज की सच्चाई का वर्णन, दिली दाद कुबूल करें
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