१-मीठा ज़हर
आज फिर खाली हाथ लौटा घर को
मायूसी का जंगल उग आया है
चारों तरफ
फिर भी मै
हँस के पी जाता हूँ दर्द का मीठा ज़हर
२- एहसान
एक एहसान कर दो
जाते जाते
समेट कर ले जाओ अपनी यादें ।
आज जी भर कर सोना है मुझे
३-महान
सम्मान बेचकर भी
ह्रदय अब तक स्पंदित है
आप महान हो
४-तकिया
अब बहुत अच्छी नींद आती है मुझे
पता है क्यूँ?
दर्द को ही तकिया बना लिया मैंने
५-हँसी
तुम्हारे आने और जाने के बीच
बहुत कुछ गुजरता है मुझसे होकर
और एक गुप्त बात बताऊँ आपको
आप की हँसी को मैंने
किताब के पन्नों में दबा रखा हूँ
बस उसे ही उलटता पलटता रहता हूँ
६-देखा है मैंने
टूटी झाडू से
साफ़ करता रहा
सभ्य लोगों द्वारा की गयी गन्दगी
केवल!चंद सिक्कों के लिए
७-ऐसा न करो
दिल तेरा पत्थर का माना
मुझसे प्यार भी नहीं माना
मगर जाते -जाते
मेरे कपडे न उतार
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई केवल जी //सादर
आदरणीय , वृत का २ , ३, ६ और ७ भाग मुझे अति प्रिय लगा ! बहुत ही गहन बातें हैं ... शब्दों और भावों का परस्पर सामंजस्य कमाल है !...बढ़िया ...बहुत सुन्दर :)
सादगी ,सन्देश ,प्रहार से भरपूर क्षणिकाएं
//एक एहसान कर दो
जाते जाते
समेट कर ले जाओ अपनी यादें ।
आज जी भर कर सोना है मुझे// बहुत बढ़िया भाई राम शिरोमणि जी बधाई स्वीकार करें
४-तकिया
अब बहुत अच्छी नींद आती है मुझे
पता है क्यूँ?
दर्द को ही तकिया बना लिया मैंने....... वाह लाजवाब.......
६-देखा है मैंने
टूटी झाडू से
साफ़ करता रहा
सभ्य लोगों द्वारा की गयी गन्दगी
केवल! चंद सिक्कों के लिए................ बहुत सुंदर प्रहार........... काफी दिनों के पश्चात् इतनी सुंदर क्षणिकाएँ पढ़ने को मिली हैं आदरणीय राम शिरोमणि जी.... बहुत बहुत बधाई....
बहुत अच्छी क्षणिकाएं, बधाई स्वीकारें आदरणीय राम भाई
अच्छी लगी सभी क्षणिकाये । दर्द को ही तकिया बना लिया मैंने....... बधाई रामजी।
एक एहसान कर दो
जाते जाते
समेट कर ले जाओ अपनी यादें ।
आज जी भर कर सोना है मुझे
बहुत कुछ कहती है ये क्षणिकाएं ............बधाई स्वीकार करें आदरणीय शिरोमणि भाई ....
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