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उसकी बातों पे मुझे आज यकीं कुछ कम है
ये अलग है कि वो चर्चे में नहीं कुछ कम है

जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने
तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है

मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है

मुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखो
'कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है'

देख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुए
जो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है

कुछ तो अनबन है ज़रूर उसकी, खुदा से 'राणा'
आज सजदे में झुकी उसकी ज़बीं कुछ कम है

मौलिक तथा अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 8, 2013 at 6:41am

वीनस भाई आपने बिलकुल सही लिखा है 

मूल बह्र है - २१२२ / ११२२ / ११२२ / २२ फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन 
इसमें पहले रुक्न को २१२२ फाइलातुन से गिरा कर ११२२ फ़इलातुन भी किया जा सकता है

जो भी है पहला रुक्न ११२२ या २१२२ दोनों जायज़ है|

Comment by वीनस केसरी on November 8, 2013 at 2:51am

राम अवध जी,

आपने जो अर्कान बता दिया था - मफार्इलुन फइलातुन फइलातुन फेलुन अर्थात १२२२ ११२२ ११२२ २२
यह अर्कान तो जिहाफ के नियम के अनुसार ही खारिज हो जा रहा है

किसी मुरक्कब बह्र में मुजारे ही आपके बताए अर्कान के आस पास है मगर मुजारे का मूल रुक्न है - १२२२ २१२२ १२२२ २१२२
आप देखें कि आपने जो अर्कान बताया है उसका तीसरा रुक्न ११२२ है और मुजारे का तीसरा मूल रुक्न १२२२ है ,,,
मेरी जानकारी में बहरे हजज के रुक्न-ए-ह्श्व में ये जिहाफ है ही नहीं कि १२२२ से ११२२ कर सकें

किसी और बह्र में दाइरों के हवाले से आप इस अर्कान को सही सही बता सकें तो बह्र का नाम (मय जिहाफत) बता दें तो आपका अहसान मंद रहूँगा 
सादर

Comment by वीनस केसरी on November 8, 2013 at 2:49am

राणा भाई बह्र पर सुन्दर चर्चा चली
एक जगह आपने लिखा है -
//१. पहला रुक्न फइलातुन को फाइलातुन अर्थात ११२२ को २१२२ भी किया जा सकता है//

इस वक्तव्य को संशोधित कर लें, शुद्ध रूप ये है  -
इस बह्र का अर्कान यह है - २१२२ / ११२२ / ११२२ / २२ फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
इसमें पहले रुक्न को २१२२ फाइलातुन से गिरा कर ११२२ फ़इलातुन भी किया जा सकता है (ऐसा ही बह्र-ए-खफीफ में भी होता है)

आपने उल्टा बता दिया है

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 7, 2013 at 4:39pm

आदरणीय राणा प्रताप सर , लाजवाब तरही गज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई !!!! आदरणीय राम अवध भाई को भी शुक्रिया उनके प्रश्न से बह्र के विषय नई बातें पता लगीं !!!! आपको भी शुक्रिया बह्र के विषय मे विस्तार से समझाने के लिये !!!!!

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 7, 2013 at 4:30pm

आदरणीय श्री राणा प्रताप सिंह जी आपने सही बहर बता कर मेरा ज्ञान वर्धन किया इसके लिये कोटि कोटि धन्यवाद। मै तो ' ज़िंदगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है  को भी फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन के मीटर से ही तख्तीर्इ करता। एक बार पुन: शुकि्रया। बेहद तंग जमीन होने के बावजूद भी आपने इतने खूबसूरत शेर कहे इसके लिये बधार्इ। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2013 at 4:13pm

इतने तंग काफ़िये पर आप द्वारा ग़ज़ल का हो जाना यही आश्वस्त करता है कि आपने उन सारे नहीं तो करीब-करीब सारे काफ़ियों के लिए उपलब्ध हुए शब्दों का प्रयोग कर लिया है.. ... :-))

हृदय से बधाई.

आप द्वारा बह्र को लेकर हुई व्याख्या के प्रति साधुवाद.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 7, 2013 at 3:18pm

आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी 

तरह का मिसरा "कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है" इसकी तख्तीई मैं कुछ इस प्रकार कर पाया 

११२२ ११२२ ११२२ २२ 

फइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन 

अर्थात बहरे रमल की मुजाहिफ सूरत बनती है, ज़िहाफ करने पर इसे बहरे रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ नाम दिया जाएगा|

इस बह्र में दो प्रकार की छूट जायज़ मानी गई है

१. पहला रुक्न फइलातुन को फाइलातुन अर्थात ११२२ को २१२२ भी किया जा सकता है 

२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है| 

इस प्रकार से ग़ज़ल बह्र में ही है|

वैसे भी यह माना जाता है की ग़ज़ल की बह्र निकालते समय किसी एक मिसरे की बजाय कम अज कम दो मिसरों की तख्तीई कर लेनी चाहिए, अन्यथा धोखा हो सकता है |

मिसरा -ए-तरह शहरयार साहब की इस मशहूर ग़ज़ल से लिया गया था, जिस पर एक समय ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे को आयोजित करने की योजना थी परन्तु यह ज़मीन बेहद तंग, होने के कारण इस मिसरे पर मुशायरा आयोजित नहीं किया गया|

ज़िंदगी जैसी तम्माना थी नहीं कुछ कम है ....
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है ....

घर की तमीर तसव्वुर ही मे हो सकती है ,,,,,
अपने नक़्शे के मुताबिक ये ज़मीं कुछ कम है ....

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी ,,,,
दिल मे उमीद तो काफ़ी है यकीं कुछ कम है .....

अब जिधर देखिए लगता है इस दुनिया मे ,,,,
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है ....

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब ,,,,
ये अलग बात के पहली सी नहीं कुछ कम है ....

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2013 at 3:09pm

GaZhal bhi kahan kisi se kuch kam ha.

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 7, 2013 at 12:59pm

आदरणीय श्री राणाप्रताप सिंह जी
शानदार एवं सार गर्भित गजल के लिये हार्दिक बधार्इ। गजल केा देखने से लगता है कि तरह ( कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है) पर कही गर्इ गजल है। यदि यही तरह है तो सम्पूर्ण गजल बहर से खारिज है। क्योंकि गजल की बहर है मफार्इलुन फइलातुन फइलातुन फेलुन और आपने गजल कही है उसकी बहर है फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन। लेकिन यदि आप इस बहर में पूरी गजल कह रहें हैं तो ( कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है) इस मिसरे को इसी बहर में लाना होगा अर्थात जहाँ जियादा है वहाँ कुछ कम और जहाँ कुछ कम है वहाँ कुछ जियादा ही प्रयास करना होगा । मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ऐसा होना चाहिये। हो सकता है आप अपनी जगह सही हों।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 7, 2013 at 10:28am

//मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है// ये शेर अपने अंदर गूढ़ अर्थ समाहित किये हुये है, बहुत खूब

//देख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुए
जो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है// बहुत बढ़िया

आदरणीय राणा साहब दिली दाद कुबूल करें

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