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आप तो सचमुच कमाल करते हो
बेवफा होकर सवाल करते हो
जंग में तो हार जीत जायज है
हारने का क्यों मलाल करते हो
क्या हुआ जो बेवफा मुहब्बत थी
मुद्दतों से ही बवाल करते हो
.
पत्थरों के शह्र में बसर है तो
क्यों बिखरने का ख़याल करते हो
.
आदमी तो मर गया कभी से था
आत्मा को भी हलाल करते हो
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित रचना
Comment
बहुत ख़ूब .. बधाई ... गुरुजनों ने उचित मार्गदर्शन किया ही है ...
आदरणीय उमेश जी,सुन्दर प्रस्तुति...........हार्दिक बधाई
आदरणीय उमेश जी, उम्दा गजल के लिए बधाई हो
आदरणीय उमेश जी, आपको शायद पहली बार सुनने का सौभाग्य प्राप्त कर रहा हूँ. वाह !!!!!!!!!!!!
सादगी में भी कमाल करते हो
धूल को भाई गुलाल करते हो.............
बधाइयाँ.....................
इस सफलतम प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आ0 उमेश जी.....
आदरणीय ग़ज़ल पर बहुत ही अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीया राजेश माँ जी के कहे पर ध्यान दें शेर नंबर ०४ में तकाबुले रदीफ़ का दोष है. इस प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें
आप तो सचमुच कमाल करते हो-----बहुत सुन्दर मतला
बेवफा होकर सवाल करते हो
जंग में तो हार जीत जायज है
हारने का कितना मलाल करते हो----हारने का क्यों मलाल करते हो ---करेंगे तो बहर सही हो जायेगी
क्या हुआ जो बेवफा मुहब्बत थी
मुद्दतों से उसका बवाल करते हो----मुद्दतो से ही बवाल करते हो ---करके देखिये ---उसका को आपने सिर्फ २ मात्रा में बाँधा है
.
पत्थरों के शह्र में बसर है तो
क्यों बिखरने का ख़याल करते हो
.
आदमी तो मर गया कभी से था
आत्मा को भी अब हलाल करते हो----आत्मा को भी हलाल करते हो ----अब हटा दीजिये फ़ालतू है
बहुत बढ़िया ग़ज़ल बन रही है दाद कबूलें बस उपर्युक्त सुधार कर लें.
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