मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं
कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़ कर आते हैं
दिल में जन्म लिया शब्दों ने , बूँदें बन कर ज्यों बरसे
अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों में ढल जाते हैं
मेरी कलम की स्याही पाकर , रूप गीत का है सँवरा
रस छंदों से मुक्तक मिलकर, काव्य कलष छलकाते हैं
साँस-साँस में छुपे दर्द को ,घूँट-घूँट हैं जो पीते
मिलकर पन्नों से वो आखर ,नव जीवन जी जाते हैं
पल-पल भाव हृदय से उठकर, कलम की बाहों में आकर
कभी ग़मों की मधुशाला या,सरस गीत बन जाते हैं
मन के कागज़ पर लिख देते, सप्तसुरों की परिभाषा
स्वर वीणा के तार छेड़कर, झंकृत ये कर जाते हैं
दोहों छंदों की माटी में ,नव अँकुर हैं जब-जब फूटे
गीतों की सरिता में बहकर, मन सिंचित कर जाते हैं
मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं
कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़ कर आते हैं
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
गीत रचना की मानसिक आत्मिक प्रक्रिया का गहन अंतर्प्रेक्षण कर समस्त प्रक्रिया को गीतबद्ध कर देना एक समर्थ साधिका का ही कार्य हो सकता है, नमन।
आ0 राजेश जी, जी, आपने सही ही कहा....//मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं// जब तक दिल मे भावों का जन्म नहीं होता है, गीत शब्द नहीं बन पाते है। वाह क्या बात है। बहुत सुन्दर गीत...आनन्द आ गया। हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर,
आदरणीय अरुण निगम जी त्रुटी इंगित करने के लिए दिल से आभार आपका ,मेरे शब्दकोष ने भ्रम पैदा किया जिसमे अँकुर भी है अंकुर भी है ,कलष भी कलश भी है आपने कहा है तो सही होगा ,मेरे कलम की स्याही पाकर =हाँ एक मात्रा अधिक है किन्तु गायन में सही आ रहा है तो ये चांस लेना पड़ा ,फिर भी मूल पोस्ट में ठीक करने की कोशिश करुँगी हार्दिक आभार आपका
आदरणीया , बिल्कुल सही कहा. गीत का जन्म ऐसे ही होता है. कलष को कलश और अँकुर को अंकुर कर लें. शायद टंकण त्रुटि होगी.
मेरी कलम की स्याही पाकर...............इस पंक्ति में मुझे प्रवाह कुछ बाधित प्रतीत हो रहा है.
दोहों छंदों की माटी में ,नव अँकुर हैं जब-जब फूटे
गीतों की सरिता में बहकर, मन सिंचित कर जाते हैं ...
अतिसुन्दर
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी प्रतिक्रिया ने इस गीत को सार्थकता प्रदान की ,मेरी लेखनी को नव ऊर्जा प्राप्त हुई दिल से आभार आपका
जीतेन्द्र गीत जी प्रस्तुति आपकी सराहना पाकर धन्य हुई .दिल से आभारी हूँ
आदरणीय अखिलेश श्रीवास्तव जी आपकी प्रतिक्रिया से हर्षित हूँ ,मेरा लिखना सार्थक हुआ ,हार्दिक आभार आपका
प्रिय अन्नापूर्णा जी आपका बहुत- बहुत आभार.
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपको गीत एवं भाव भाव अच्छे लगे ,प्रस्तुति पर आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार
प्रिय प्राची जी गीत के भाव आपके दिल को छू सके आपको पसंद आया दिल से आभारी हूँ
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