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अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों में ढल जाते हैं (गीत )

मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं 

कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़  कर आते हैं 

 

दिल में जन्म लिया शब्दों ने , बूँदें बन कर ज्यों बरसे

अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों  में ढल जाते हैं

 

मेरी कलम की  स्याही पाकर  , रूप गीत का  है सँवरा

रस छंदों से मुक्तक मिलकर, काव्य कलष छलकाते हैं

 

साँस-साँस में छुपे दर्द को ,घूँट-घूँट हैं जो पीते

मिलकर पन्नों से वो आखर ,नव जीवन जी जाते हैं

 

पल-पल भाव हृदय से उठकर, कलम की बाहों में आकर

कभी ग़मों  की मधुशाला या,सरस गीत बन जाते हैं

 

मन के कागज़ पर लिख देते, सप्तसुरों की परिभाषा  

स्वर  वीणा  के तार छेड़कर, झंकृत ये कर जाते हैं

 

दोहों छंदों की माटी में ,नव अँकुर हैं जब-जब फूटे

गीतों की सरिता में बहकर, मन सिंचित कर जाते हैं  

मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं 
कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़  कर आते हैं

**************************************

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 12, 2013 at 8:41am

प्रिय राम शिरोमणि जी ये गीत आपको पसंद आया दिल से आभार आपका 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 12, 2013 at 8:18am

सुंदर गीत रचना पर, बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीया राजेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 7:03am

आदरणीया राजेश कुमारी जी , बहुत सुन्दर गीत की रचना हुई है !!!!! मेरी अब तक की पढी आपकी रचनाओं मे सर्व श्रेष्ठ रचना !!! आपको बहुत बहुत हार्दिक बधाई !!!!!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 11, 2013 at 11:41pm

बेहद सुंदर भाव, अति सुंदर गीत बधाई स्वीकारें आदरणीया राजेश जी

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 11, 2013 at 11:34pm

कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़  कर आते हैं...

क्या कहना , सुंदर भाव लिए सुंदर गीत , हर पंक्ति लाजवाब,  हार्दिक बधाई आ. राजेशकुमारीजी।

Comment by annapurna bajpai on November 11, 2013 at 10:59pm

आ0 राजेश कुमारी जी अत्यंत सुंदर गीत बधाई आपको । 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 11, 2013 at 10:27pm

उमड़ उमड़  कर जो भी  बादल भावों  के आ जाते है

वह  ही प्रिय  कविता  में  आकर सुन्दर रस बरसाते है  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 11, 2013 at 9:15pm

साँस-साँस में छुपे दर्द को ,घूँट-घूँट हैं जो पीते

मिलकर पन्नों से वो आखर ,नव जीवन जी जाते हैं

स्वतः निस्सृत होते भाव-शब्दों नें सुन्दर अभिव्यक्ति पाई है...

हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश जी  

Comment by ram shiromani pathak on November 11, 2013 at 5:58pm

पल-पल भाव हृदय से उठकर, कलम की बाहों में आकर

कभी ग़मों  की मधुशाला या,सरस गीत बन जाते हैं

 

मन के कागज़ पर लिख देते, सप्तसुरों की परिभाषा  

स्वर  वीणा  के तार छेड़कर, झंकृत ये कर जाते हैं///वाह बहुत ही सुन्दर 

बहुत ही सुन्दर गीत आदरणीया राजेश कुमारी जी  ....

बहुत बहुत बधाई आपको सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 11, 2013 at 12:29pm

प्रिय प्रवीण मलिक जी आपको गीत पसंद आया दिल से आभारी हूँ 

कृपया ध्यान दे...

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