देश काल निमित्त की सीमाओं में जकड़े तुम
और तुम्हारे भीतर एक चिरमुक्त 'तुम'
-जिसे पहचानते हो तुम !
उस 'तुम' नें जीना चाहा है सदा
एक अभिन्न को-
खामोश मन मंथन की गहराइयों में
चिंतन की सर्वोच्च ऊचाइंयों में
पराचेतन की दिव्यता में.....
पूर्णत्वाकांक्षी तुम के आवरण में आबद्ध 'तुम'
क्या पहचान भी पाओगे
अभिन्न उन्मुक्त अव्यक्त को-
एक सदेह व्यक्त प्रारूप में......?
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया राजेश जी
मानव मन कब आपाधापी में नहीं घिरा रहता..?
रचना पर आने और उसे वक़्त दे सराहने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद
सादर.
आदरणीया प्राची दी जिस गहनता आप रचनाएँ लिखती हैं उसका पार पाना मेरे लिए सैदव कठिन होता है, प्रस्तुत रचना विचार करने को बाध्य कर रही है बहुत ही गहरे भाव बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
vicharniy rachna ... badhai Prachi ji
अभिव्यक्ति में भाव शब्द अंतर्गुन्थन को मान देने के लिए आभार आ० नीरज मिश्रा जी
पूर्णत्वाकांक्षी तुम के आवरण में आबद्ध 'तुम'
क्या पहचान भी पाओगे
अभिन्न उन्मुक्त अव्यक्त को-
एक सदेह व्यक्त प्रारूप में......?
सत्य से अवगत कराती सार्थक रचना आदरणीया डॉ.साहिबा बहुत सुन्दर चिंतन
विचारणीय प्रश्न उठाती रचना महत्वपूर्ण दार्शनिक आयामों को समेटे है। 'तुम' को सदेह जानने की कोशिश में कुछ सल्लेखना को प्राप्त कर जाते हैं और कुछ महापरिनिर्वाण को। कुछ पंचभूत में लिप्त होने को ही 'तुम' की प्राप्ति का मार्ग समझते हैं। माननीया आप की अन्य रचना प्रतीक्षित है जो इस गहन प्रश्न का इसी सातत्य में आपके अपने अनुभवों को समेटती सहेजती हो। अंतर्मन को बेधती इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर नमन।
आदरणीया डॉ प्राची जी आपकी इस कविता ने कुछ पलों के लिये स्तब्ध कर दिया था,मैं कुछ पल के लिये अनुत्तरित हो गया, क्या वाकई ये वही "तुम" हैं जो नज़र आ रहा है या अभी तक वो अंदर ही है? इस सवाल का जवाब बहुत मुश्किल है और अधिकतर लोगो के मन में ये अंतर्द्वंद्व चलता ही रहता है,
बहुत ही खूबसूरत और सच्चाई से जुड़ी रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें
आदरणीया प्राची जी ..इस गहन चितन से ओतप्रोत शसक्त रचना के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें ..सादर
बहुत ही सुन्दर चिंतन है आपका आदरणीया डॉ प्राची जी
इस सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारिये
आ डॉ. प्राची जी सादर,
दिव्य चिंतन पर आधारित आपकी यह रचना दिव्यता के साथ साथ प्रगल्भ ज्ञान की अनुभूति कराती है. आदरणीया.
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