मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ?
गीत मेरे सुन वाह करोगी ?
सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया
जीवन के संग रहा खेलता , प्रणय निवेदन कर ना पाया
क्या जीवन से डाह करोगी ?
कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता
काल-चक्र कब मेरे बस में , कौन भला है इससे जीता
अब मुझसे क्या चाह करोगी ?
श्वेत श्याम रतनार दृगों में , श्वेत पुतलियाँ हैं एकाकी
काले कुंतल श्वेत हो गए , सिर्फ झुर्रियाँ तन पर बाकी
क्या इनको फिर स्याह करोगी ?
आते-जाते जल-घट घूँघट , कब पनघट ने प्यास बुझाई
स्वप्न-पुष्प की झरी पाँखुरी, मरघट ही अंतिम सच्चाई
अंतिम क्षण, निर्वाह करोगी ?
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
[मौलिक व अप्रकाशित]
Comment
आदरणीय अरुण जी ..आपकी इस रचना का कोई जवाब नहीं ...बार बार पढने को बिबश करती वाकई एक शानदार रचना ..
आते-जाते जल-घट घूँघट , कब पनघट ने प्यास बुझाई
स्वप्न-पुष्प की झरी पाँखुरी, मरघट ही अंतिम सच्चाई
अंतिम क्षण, निर्वाह करोगी ?..ये पंक्तियाँ मुझे बेहद पसंद आयीं ..सादर
सुख दुख की आपाधापी ने,रात दिवस है खूब छकाया
जीवन के संग रहा खेलता .प्रणय निवेदन कर न पाया
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्
एक सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति के लिये बधायी आदरणीय अरुण निगम जी
आपका भावनात्मक उन्मेष कविता में भरे हुए मेघ की तरह उमड़ कर बरसा है ! यह मन को विभोर कर देने वाली ऐसी अनूठी रचना बार -बार पढने को मन करता है ! असीम सराहना के साथ |
सादर,
विजय निकोर
बहुत सुन्दर आदरणीय। हार्दिक बधाई
आ0 अरून सर जी, बहुत सुन्दर गीत...आनन्द आ गया। हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर,
सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया
जीवन के संग रहा खेलता , प्रणय निवेदन कर ना पाया
क्या जीवन से डाह करोगी ?
कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता
काल-चक्र कब मेरे बस में , कौन भला है इससे जीता
अब मुझसे क्या चाह करोगी ?
आदरणीय अरुण निगम जी, बहुत उम्दा गीत, क्या कहने.... लाजवाब प्रस्तुति ।
क्या बात है सर जी बेहद खूबसूरत
मृत्यु को वरने का साहस करना
ग़ज़ब
इस सुन्दर प्रस्तुति पर ढेरों बधाई सर जी
जय हो जय हो जय हो
आदरणीय अरुण निगम भाई , बहुत सुन्दर रचना , मृत्यु को भी आपने प्रेयसी के रूप मे देखा, बहुत अनोखा रिश्ते की हिम्मत के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!
आदरणीय अरूण सर लाजवाब प्रस्तुति, वाह शुरू से आखिर तक आपकी ये रचना बाँधे रखने मे कामयाब है, आपको बहुत बहुत बधाई
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