For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ? ( अरुण कुमार निगम)

मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ?

गीत मेरे सुन वाह करोगी ?

सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया  

जीवन के संग रहा खेलता , प्रणय निवेदन कर ना पाया

क्या जीवन से डाह करोगी ?

कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता

काल-चक्र  कब  मेरे बस में , कौन  भला है इससे जीता

अब मुझसे क्या चाह करोगी ?

श्वेत श्याम रतनार दृगों में , श्वेत पुतलियाँ  हैं एकाकी  

काले कुंतल  श्वेत हो गए , सिर्फ झुर्रियाँ तन पर बाकी

क्या इनको फिर स्याह करोगी ?

आते-जाते जल-घट घूँघट , कब पनघट ने प्यास बुझाई

स्वप्न-पुष्प की झरी पाँखुरी, मरघट ही अंतिम सच्चाई  

अंतिम क्षण, निर्वाह करोगी ?

अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 1206

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 13, 2013 at 12:11pm

आदरणीय अरुण जी ..आपकी इस रचना का कोई जवाब नहीं ...बार बार पढने को बिबश करती वाकई एक शानदार रचना ..

आते-जाते जल-घट घूँघट , कब पनघट ने प्यास बुझाई

स्वप्न-पुष्प की झरी पाँखुरी, मरघट ही अंतिम सच्चाई  

अंतिम क्षण, निर्वाह करोगी ?..ये पंक्तियाँ मुझे बेहद पसंद आयीं ..सादर 

Comment by umesh katara on November 13, 2013 at 9:01am

सुख दुख की आपाधापी ने,रात दिवस है खूब छकाया
जीवन के संग रहा खेलता .प्रणय निवेदन कर न पाया
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्
एक सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति के लिये बधायी आदरणीय अरुण निगम जी 

Comment by vijay nikore on November 13, 2013 at 4:55am

आपका भावनात्मक उन्मेष कविता में भरे हुए मेघ की तरह उमड़ कर बरसा है ! यह मन को विभोर कर देने वाली ऐसी अनूठी रचना बार -बार पढने को मन करता है ! असीम सराहना के साथ |

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 12, 2013 at 11:50pm

बहुत सुन्दर आदरणीय। हार्दिक बधाई

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 12, 2013 at 10:44pm
वाह अरूणजी वाह साहसिक,वैचारिक, अनुपम प्रयोग, बधाई बधाई
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 12, 2013 at 8:42pm

आ0 अरून सर जी,    बहुत सुन्दर गीत...आनन्द आ गया।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर,

Comment by नादिर ख़ान on November 12, 2013 at 3:54pm

सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया  

जीवन के संग रहा खेलता , प्रणय निवेदन कर ना पाया

क्या जीवन से डाह करोगी ?

कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता

काल-चक्र  कब  मेरे बस में , कौन  भला है इससे जीता

अब मुझसे क्या चाह करोगी ?

आदरणीय अरुण निगम जी, बहुत उम्दा गीत, क्या कहने.... लाजवाब प्रस्तुति । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 12, 2013 at 2:13pm

क्या बात है सर जी बेहद खूबसूरत

मृत्यु को वरने का साहस करना

ग़ज़ब

इस सुन्दर प्रस्तुति पर ढेरों बधाई सर जी

जय हो  जय हो  जय हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 1:52pm

आदरणीय अरुण निगम भाई , बहुत सुन्दर रचना , मृत्यु को भी आपने प्रेयसी के रूप मे देखा,  बहुत अनोखा रिश्ते की हिम्मत के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2013 at 1:16pm

आदरणीय अरूण सर लाजवाब प्रस्तुति, वाह  शुरू से आखिर तक आपकी ये रचना बाँधे रखने मे कामयाब है, आपको बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
18 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
21 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service