घने जंगल
वह भटक गया
साथी न कोई
आगे बढ़ता रहा
ढ़ूंढ़ते पथ
छटपटाता रहा
सूझा न राह
वह लगाया टेर
देव हे देव
सहाय करो मेरी
दिव्य प्रकाश
प्रकाशित जंगल
प्रकटा देव
किया वह वंदन
मानव है तू ?
देव करे सवाल
उत्तर तो दो
मानवता कहां है ?
महानतम
मैने बनाया तुझे
सृष्टि रक्षक
मत बन भक्षक
प्राणी जगत
सभी रचना मेरी
सिरमौर तू
मुखिया मुख जैसा
पोषण कर सदा ।
...........................
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आपके चोका ने तो चौका मार दिया है आ0 रमेश भाई.....बहुत बहुत बधाई....
सुंदर अभिव्यक्ति ...... आ0 रमेश कुमार चौहान जी....
अच्छा प्रयास! आपको हार्दिक बधाई!
'टेर' और 'राह' स्त्रीलिंग शब्द हैं.
'वह लगाया टेर' की जगह मेरे विचार से 'वह लगाता टेर' अधिक उपयुक्त होगा.
सादर!
आदरणीय रमेश भाई चोका कभी लिखा नहीं किन्तु पढ़कर अच्छा लगा बधाई लें
आदरणीय भंडारीजी, आदरणीय सज्जूजी, आदरणीया वेदिकाजी आपसभी का रचनो को मान देने के लिये सादर साधुवाद
आदरणीय श्रीवास्तव जी आपके उपयोगी सलाह के लिये सादर धन्यवाद
आदरणीय रमेश भाई , लाजवाब चोका के लिये बधाई !!!!!!
बढ़िया प्रयास है|
सभी रचना मेरी // मे व्याकरण दोष दिख रहा है मुझे| शेष इस विधा की जानकारी नहीं मुझे| बहरहाल बधाई लीजिये!
//देव करे सवाल
उत्तर तो दो
मानवता कहां है ?// बहुत बढ़िया
भाई रमेश जी आपकी रचना के भाव अच्छें हैं, बधाई। इस विधा के शिल्प के बारे में मेरी जानकारी शून्य है इसलिये इसपे कुछ नही कह सकता। आपको शुभकामनायें
यह चोका बाउंड्री पर कैच हो सकता है I सेफ चोका मारिये I
प्रयास सराहनीय है I
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