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यहाँ परछाईयों का सौदा होता है
हर चीज यहाँ बिकाऊ है
हर पल तमाशा लगता है
तुम अपना दाम कहो
छुप के नहीं खुले आम कहो
क्या लोगे अपनी यारी का
क्या लोगे अपनी दिलदारी का
मेरा गम लोगे कितने में
तुम प्यार करोगे कितने में
सब जज़बात तुम मेरे नाम करो
हमराही तुम अपना दाम कहो
पर दाम चुकाने के खातिर
हम अपनी जेब टटोलें तो
बस प्यार मिलेगा बहुत सारा
पर ये सिक्के अब कहाँ चलते हैं
ये दुनिया बे-एतबारी की .....
ये अर्ज है हर व्यापारी की ....


मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 18, 2013 at 1:58pm

आज की स्वाथ्परक परिस्थितियों में हर एहसास के मोल का दर्द बाखूबी व्यक्त हुआ है...

सार्थक प्रस्तुति पर हार्दिक बढ़ायी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 16, 2013 at 8:23pm

आजकी परिस्थितियों को साझा करने के लिए धन्यवाद. भावुकता को अच्छे शब्द मिले हैं. अभिव्यक्ति और शब्द व्यवहार पर भी ध्यान दिया करें.

शुभेच्छाएँ.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 16, 2013 at 12:23pm

सुंदर रचना ...हर चीज का वाकई दाम लग गया है ..सादर बधाई के साथ 

Comment by Saarthi Baidyanath on November 15, 2013 at 10:26pm

तुम अपना दाम कहो
छुप के नहीं खुले आम कहो....बढ़िया बाजार है साहब ..एक अच्छी रचना पढ़ने को मिली !...बधाई :)

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 15, 2013 at 10:18pm

बहुत सही और यथार्थ कहा है आपने 

मन को भा गयी है ये रचना 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 15, 2013 at 6:31pm

प्यार  ,दोस्ती , व्यवहार , यहाँ तक कि संस्कार में भी बाज़ारवाद हावी हो गया है , सुंदर रचना,  हार्दिक बधाई अमोद भाई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 15, 2013 at 9:18am

वाह आदरणीय आमोदजी खूबसूरत रवां प्रस्तुति भाव पक्ष भी मजबूत है दिली मुबारक बाद स्वीकार करें

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 14, 2013 at 11:43pm

सच! आज के समय में, यहाँ मतलबी इंसानों ने भाव तय कर रखे हैं , ईमान, भावनायें, रिश्ते-नाते, सब बिकाऊ है, जो चाहो खरीद लो..

 रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय आमोद जी

Comment by Amod Kumar Srivastava on November 14, 2013 at 10:26pm

बहुत बहुत आभार आ0 बृजेश जी, आ0 अभिनव अरुण जी, आ0 अरुण शर्मा जी, आ0 मीना पाठक जी, आ0  अखंड जी, आ0 गोपाल नारायण जी, आ0 सुशील जी.... उत्साहवर्धन के लिए.... 

Comment by बृजेश नीरज on November 14, 2013 at 8:31pm

अच्छी रचना! आपको हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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