देख सियासतदानों ने सत्ता पाकर क्या काम किया
कच्ची सड़कें खुद बनवाकर अभियंता बदनाम किया
इल्म नया दे रस्म रिवाज अदब का काम तमाम किया
मगरीबी तहजीबें अपनाकर फिर मुल्क गुलाम किया
देख बुढापा मात पिता का सोचे कब रुखसत होंगे
बेटे ने तब पहले उनकी दौलत अपने नाम किया
सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को
तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया
वीराना था ये घर मेरा तेरे आने से पहले
दीप जलाकर प्रेम का तुमने इसको पावन धाम किया
संदीप कुमार पटेल “दीप”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय राम भाई, आदरणीय आशीष भाई आप दोनों का ह्रदय से आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर
आदरणीय सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपकी सराहना पाकर मन प्रसन्न हो गया
ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये
तत आदरणीय सम्पादक महोदय से विनम्र निवेदन है की
मिसरे को इस तरह सुधार कर दें
कच्ची सड़कें बनवाकर अभियंता को बदनाम किया
बढ़िया ग़ज़ल भाई संदीप जी !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय भाई जी हार्दिक बधाई आपको///सादर प्रयास
फेलुन फेलुन .. फ़ा के वज़्न पर अच्छी कोशिश हुई है.
यदि आपको बुरा न लगे तो कह पाऊँ कि अभियंता बदनाम किया जँच नहीं रहा है. इसका कारण मध्य से कर्म कारक का अनावश्यक हुआ लोप है. आप उस मिसरे में खुद शब्द को हटा कर अभियंता को बदनाम किया कर सकते हैं. वैसे मैं कोई दवाब नहीं डाल रहा. यह प्रस्तुति पहले ही सुधीजनों से भरपूर वाहवाही पा चुकी है.
शुभ-शुभ
आदरणीय गोपाल सर जी, आदरणीय अरुण भाई साहब, आदरणीय अरुण निगम सर, आदरणीय वीनस जी, आदरणीय राजेश सर , आदरणीय अखिलेश जी , आदरणीय गिरिराज भंडारी सर, आदरणीय अभिनव सर , आदरणीया गीतिका दीदी,
आप सभी अग्रजों, गुरुजनों, और मित्रों का मेरे इस प्रयास को अपना बेशकीमती समय देने के लिए हृदय से धन्यवाद
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सादर
आदरणीय वीनस जी
आपके कहे अनुसार आदरणीय सम्पादक महोदय से निवेदन है की
मात्रा भार
२ /२/२/२/२/२/२/२/२/२/२/२/२/२/२ इंगित करने की कृपा करें
सादर प्रार्थी
जय हो आदरणीय, आपकी सदा जय हो, बहुत बढि़या प्रस्तुति है, सादर
इस लाजवाब कटु सत्य रचना की बधाई स्वीकार करें संदीप भाई ॥
वाह वाह आदरणीय प्रिय मित्रवर बहुत ही उम्दा ग़ज़ल यथार्थ का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत दो अशआरों में विशेष तौर से दाद कुबूल फरमाएं.
देख बुढापा मात पिता का सोचे कब रुखसत होंगे
बेटे ने तब पहले उनकी दौलत अपने नाम किया वाह भाई वाह
सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को
तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया बेहद उम्दा
आदरणीय संदीप जी, उम्दा ग़ज़ल....
देख बुढापा मात पिता का सोचे कब रुखसत होंगे
बेटे ने तब पहले उनकी दौलत अपने नाम किया
सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को
तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया
इन दोनों अश'आरों के लिए दिली दाद...........
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