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कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी--(गीत )

गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

मेरी  चिरैया कितना उड़ती

पूछे जब उन आँखों से 

पलक ना झपके उत्तर ढूंढें  

तब तू जाना टाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

पूछेगी फिर बेला चमेली

कितनी चढ़ी ऊँचाई  पर

इस घर में नही कोई सीढ़ी 

छोटी है दीवाल सखी  

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

जब वो हंसती कितनी झरती  

मुक्तक मणियाँ मुखड़े से  

समझाना यहाँ मेरी झोली     

अब है मालामाल सखी  

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

पूछेगी उसकी अँखियों का

कजरा अब कितना खिलता  

खोल के तू अपने हाथों से

देना ये रुमाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी 

सुनके मेरी बातें अगर जो        

मैय्या का उर भर आये    

तुझको कसम है इस बहना की

लेना तू संभाल सखी

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी

********************************* 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on November 19, 2013 at 10:46pm

चन्द्र शेखर पाण्डेय जी गीत के भाव आपके हृदय को छू सके ,मेरी रचना सार्थक हुई बहुत बहुत आभारी हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 19, 2013 at 10:44pm

प्रिय संदीप पटेल जी गीत आपको पसंद आया हार्दिक आभार आपका 

Comment by MAHIMA SHREE on November 19, 2013 at 10:27pm

बहुत ही सुंदर भावनात्मक गीत ... हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया राजेश दी ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 19, 2013 at 9:55pm

बहुत खूब आदरणीया राजेश दीदी बेहतरीन ह्रदयस्पर्शी गीत बना है बधाई आपको

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 19, 2013 at 9:38pm

एक संस्कारित बिटिया ससुराल और मायका दोनों की लाज रखती है। सुंदर भावुक कर देने वाला गीत, हार्दिक बधाई आ. राजेशकुमारीजी

Comment by नादिर ख़ान on November 19, 2013 at 7:47pm

पूछे जब उन आँखों से 

पलक ना झपके उत्तर ढूंढें  

तब तू जाना टाल सखी.......

पूछेगी फिर बेला चमेली

कितनी चढ़ी ऊँचाई  पर

इस घर में नही कोई सीढ़ी 

छोटी है दीवाल सखी  

कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी....

आदरणीया राजेश कुमारी जी, क्या कहने बहुत सुंदर गीत, उम्दा अभिव्यक्ति, मन हर लिया दीदी आपने ।

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 19, 2013 at 7:41pm

''मेरी चिरैया '' को सोन चिरैया (पहले मुझसे टंकण-त्रुटि हुई थी)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 19, 2013 at 7:40pm

वाह,वाह आदरणीया .......अतिसुन्दर गीत रचा है. गीत में भारतीय संस्कृति छलक रही है. दृश्य सजीव हो उठे.बधाई.............

कहीं-कहीं पर प्रवाह ज़रा बाधित लग रहा है.

क्या----

'' पूछेगी '' को पूछे //

''मेरी चिरैया'' को सों चिरैया //

''बेला चमेली'' को बेल-चमेली //

''सुन के मेरी बातें'' को सुनके मेरी बात // 

किया जा सकता है ? 

 

Comment by annapurna bajpai on November 19, 2013 at 6:55pm

बहुत सुंदर भाव , सुंदर शिल्प , सुंदर प्रस्तुति क्या कहूँ , आ0 राजेश कुमारी जी निशब्द  हूँ । आपकी लेखनी को नमन ,  बहुत बधाई आपको । 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 19, 2013 at 6:32pm

राजेश कुमारी जी

आपकी व्यथा कथा से मै भावुक हो गया i

भारत की  नारिया इसीलिये तो पूज्या  मानी जाती  है i

वह अपना दर्द अपने सीने में समेटे संसार से विदा हो जाती है

पर बयाँ  नहीं करती  i  आपके भाव  शिल्प पर भारी है  i

 मै इन भावो  को प्रणाम करता हूँ  i  

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