२२१ २/१२२ /२२१ २/१२२
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मेरा जह्न बुन रहा है, हर रब्त रब्त जाले,
पढता ग़ज़ल मै कैसे, लगे हर्फ़ मुझ को काले.
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मेरी धडकनों का मक़सद मेरी जिंदगी नहीं है,
के ये जिंदगी भी कर दी किसी और के हवाले.
...
मेरी नाव डूबती है, तेरे साहिलों पे अक्सर,
मुझे काश इस भँवर से तेरी आँधियाँ निकाले.
...
अगर आ सके, अभी आ, तुझे वास्ता ख़ुदा का,
मेरा दम निकल रहा है, मुझे गोद में समा ले.
...
रहा देर तक भटकता किसी छाँव के लिए वो,
बिस्मिल हुआ है सूरज, हुए जिस्म पे है छाले.
...
चलो ‘नूर’ जिंदगी में, ये रहा उधार मुझ पर,
मेरी शाइरी तुम्ही से, सभी रंग तुमने डाले.
.........................................................
मौलिक व अप्रकाशित
निलेश 'नूर'
Comment
आदरणीय निलेश जी, आदरणीय राणा साहब के कहे अनुसार अगर आप अरकान का उल्लेख करें तो कन्फ्यूज़न की स्थिति नही बनेगी ग़ज़ल तो लाजवाब है ही, बधाई स्वीकार करें, प्रयासरत रहें ताकि आपकी अच्छी अच्छी गज़लें इसी तरह आगे भी पढ़ने को मिलें
बहुत बहुत आभार आदरणीय Rana Pratap Singh जी... जैसा मैंने कहा कि मुझे वाकई बह्र की समझ नहीं है ... बस एक लय बन जाती है और उसी पर जो भी बन पड़ता है ..लिखने का प्रयत्न रहता है ...
आप की ये टिप्पणी बहुत मददगार होगी मेरे लिए .... आप बेझिझक टोक दिया कीजिये... आप ने बताया है उस हिसाब से इस ग़ज़ल को ११२१२/११२१२/११२१२/११२१२ या २१२/२१२२ ... जिस बह्र के नज़दीक होगी, उसमे फिर से कहने का प्रयत्न करूँगा.
आभार
आदरणीय निलेश जी
उर्दू की दो मकबूल और बहुत ही प्यारी बहरें हैं जो मुशायरों की सरताज हैं, पर इनमे बहुत ही मामूली सा अंतर है|
१. बह्रे मुजारे मुसम्मन् अखरब
मफऊलु फाइलातुन मफऊलु फाइलातुन
२२१ २१२२ २२१ २१२२
२. बह्र रमल मुसम्मन मशकूल
फइलातु फाइलातुन फइलातु फाइलातुन
११२१ २१२२ ११२१ २१२२
आपके अशआर इन्हीं दोनों बहरों में मिल गए हैं, हालांकि लयात्मकता और गाने पर कोई ख़ास अंतर पता नहीं चलेगा|
जहां भी दो स्वतंत्र ११ आते हैं वहां बहुत सावधान रहने की ज़रुरत होती है, इस बार होने वाले तरही मुशायरे की बह्र में भी यही सावधानी बरतनी होगी
दूसरी बात मेरी को मिरी की तरह गिराकर पढने से भी यह दो स्वतंत्र ही रहेगा ११ की जगह हम इसे २ नहीं कर सकते हैं, इसी तरह मुझे में झे को गिराने से भी यह ११ ही रहता है|
अशआर बहुत अच्छे हुए हैं..और एक उम्दा ग़ज़ल होने की हैसियत रखते हैं| हार्दिक शुभकामनाएं|
सादर
सभी मित्रों का और गुणी जानो का आभार... आदरणीय शकील जमशेदपुरी जी; CHANDRA SHEKHAR PANDEY जी व Shijju Shakoor जी, बह्र आदि का ज्ञान मुझे भी नहीं है लेकिन जब कोई ग़ज़ल सुनता हूँ तो उसकी तर्ज़ पर लिखने का प्रयत्न करता हूँ... गुलाम अली साहब की गायी हुई ग़ज़ल है जिसके शाइर है जनाब मुस्तफा ज़ैदी साहब
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कोई हमनफस नहीं है, कोई राज्दां नहीं है
फकत इक दिल था मेरा सो वो मेहेरबां नहीं है।
किसी और गम में इतनी खलिश-ऐ-निशाँ नहीं है
गम-ऐ-दिल मेरा रफीको गम-ऐ-रायेगां नहीं है।
२२१ २/१२२ /२२१ २/१२२
मेरी रूह की हकीक़त मेरे आंसुओं से पूछो
मेरा मज्लिसी तबस्सुम मेरा तर्जुमा नहीं है।
किसी आँख को सदा दो किसी जुल्फ को पुकारो
बड़ी धूप पड़ रही है कोई सायेबां नहीं है।
इन्ही पत्थरों पे चलकर अगर आ सको तो आओ
मेरे घर के रास्तों में कोई कहकशां नहीं है।
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बस इसी तर्ज़ पर लिखने का प्रयत्न किया है ...
मैंने अपनी ग़ज़ल में अशआरों की तक्तीअ कुछ यूँ की है ..
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मेरी नाव डूबती है, तेरे साहिलों पे अक्सर,... इसमें मेरी को गिरा कर २ मात्रिक पढ़ा गया है (मिरि) तेरे को तिर... मुझे में झे को गिराया गया है
मुझे काश इस भँवर से तेरी आँधियाँ निकाले. ....बस यही कुछ है ..
के ये जिंदगी भी कर दी ... में केवल ये से भी काम हो रहा है सो इसे ये कर ले रहा हूँ ...
असल में लय ही बहर है... उसी पर रच रहा हूँ .
आदरणीय निलेश जी ,सुन्दर प्रस्तुति बधाई आपको///सादर
आदरणीय निलेशजी आपकी ग़ज़ल हमेशा ही लाजवाब होती हैं मगर इस रचना की तक्ती कुछ समझ नही आ रही है
बधाई स्वीकारें, लाजवाब कहन और भाव के लिए माननीय। परन्तु मुझे तक्तीअ अपनी सीमित समझ के मुताबिक समझ न आई। कुछ ही अश'आर देखे और समझ न पाया। आपसे मार्गदर्शन चाहिए होगा।
मेरी धडकनों का मक़सद मेरी जिंदगी नहीं है,
के2 ये2 जिं2द1/गी2 भी2 कर2/ दी2 किसी12 और2/1 के2 हवाले122.
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मेरी22 नाव21/ डूबती212 है2/, तेरे22 साहि21/लों2 पे2 अक्सर22,
मुझे12 काश21/ इस2 भँवर12/ से2 तेरी22 आँ2/धियाँ12 निकाले.122 // कृपया संशय दूर करें।
आदरणीय निलेश जी, गजल हर बार की तरह बेहद उम्दा है। पर आपने जो मात्रा क्रम लिखा है, उस आधार पर तक्तीअ नहीं हो पा रही है। अगर इसमें कोई तकनीकी पहलू हो तो स्पष्ट करने की कृपा करें।
आदरणीय निलेश नूर जी, ऐसी उम्दा ग़ज़ल नसीब से ही सुनने को मिलती है. किस अश'आर पर क्या कहें ? हर एक पर बस मुग्ध हैं........
मेरी धडकनों का मक़सद मेरी जिंदगी नहीं है,
के ये जिंदगी भी कर दी किसी और के हवाले. ...
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मेरी नाव डूबती है, तेरे साहिलों पे अक्सर,
मुझे काश इस भँवर से तेरी आँधियाँ निकाले. .....
आदरणीय नीलेश जी सुंदर मनमोहक प्रस्तुति के लिए बधाई ।
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