नदी पर काठ का एक छोटा किन्तु मजबूत सेतु बना था I उसके नीचे माधवी झाड़ियो से रंग-बिरंगे फूल चुन रही थी I अचानक उसने विटप की ओर देखा और कहा - ' हमारे तुम्हारे गाँव के बीच यही एक नदी है जिस पर यह सेतु है I इसका मतलब समझे ?'
'नहीं----' विटप ने हंसकर कहा I
'बुद्धू ---- दो दिलो को ऐसा ही सेतु आपस में मिलाता है I ' -माधवी ने फूलो का ढेर लगाते हुए कहा ' और----- वह सेतु है विवाह i ' माधवी ने थोडा रूककर फिर कहा -' विटप, वहा सेतु पर देखो बीच में जहा खंजन पक्षी बैठा है I मेरे मन में कई बार होता है वहां से छलांग लगाऊ और नदी में देर तक त्तैरू I खूब नहाऊ, मस्ती करू i पर गाँव में यह संभव नहीं, जब छोटी थी तब नहाती थी I '
'हाँ , तुमने ठीक कहा , पर अब हमें चलना चाहिए I '
'मै तो अपने गाँव में हूँ , तुम्हे उस पार जाना है I अच्छा यह बताओ फूल अच्छे होते है या उनकी सुगंध ?'-माधवी ने कहते कहते ढेर सारे फूल विटप के चेहरे पर मल दिए I विटप सुरभित हो गया I उसने कहा -' दोनों सुन्दर होते है I पर फूलो के जाने के बाद भी सुगंध वातावरण में कुछ देर तक बनी रहती है I अच्छा आज की बाते ख़त्म I तुम्हारे घरवाले तो राजी है अब मुझे अपनी माँ को पटाना है I '
'और पिता जी को --?'- माधवी ने चिंता से पूछा I
'उन्हें नहीं वे तो माँ की मुठ्ठी में है I जैसे मै तुम्हारी मुठ्ठी में--- '
'धत -----'-माधवी शर्मा गयी I
'शरमाओ मत मै एक सप्ताह में मुहूर्त निकलवाकर आता ------'
' ये--- भा---ई , इश्किया गए हो का ? हार्न सुनायी नही दिया , कब से बजाए जा रहे है I '
विटप चौंका I उसकी विचार श्रंखला टूट गयी I उसने उस पोटली की ओर देखा जो माँ ने अपने होने वाली बहू के लिए भेजा था I वह सेतु पार कर माधवी के गाँव पहुँच चुका था I चारो ओर सन्नाटा छाया था I एक दो कुत्ते इधर -उधर आवारागर्दी कर रहे थे I कुछ मजदूरों ने उसे लापरवाही से देखा और अपने काम में लग गए I माधवी के घर पर पहुँच कर विटप को कुछ अजीब सा लगा I बरोठे में कुछ स्त्रिया और एक दो पुरुष बैठे थे I माधवी के पिता ने विटप को देखा तो फूट-फूट कर रो पड़ा -' भैया तुमने आने में देर कर दी I बिटिया सामूहिक बलात्कार का शिकार हो गयी I उसने सेतु में दुपट्टा बांधकर वही से कूदकर अपनी जान दे दी I लाश तक का पता नहीं चला I '
विटप के काटो तो खून नहीं I माँ की दी पोटली छूटते छूटते बची I वह न हंस सका न रो सका I उसी अवस्था में वह कुछ देर वही खड़ा रहा I फिर वह उलटे पाँव लौट पड़ा I उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी I धीरे-धीरे चलकर वह्सेतु तक पहुंचा I उसे माधवी का नीला दुपट्टा सेतु के बीच में उसी स्थान पर बंधा दिखाई दिया जहा उस दिन खंजन पच्छी बैठा था I तभी उसे अपनी गाँव की ओर से गाते हुए आती स्त्रियों का स्वर सुनायी दिया I उसने तुरंत माधवी का दुपट्टा खोला I उसमे माँ की दी हुयी पोटली बांधी और उसे नदी में फेंक दिया I ग्रामीण स्त्रिया समीप आती जा रही थी उनके स्वर धीरे धीरे तेज हो रहे थे I अचानक विटप बुदबुदाया -' माधवी ! तुम माधवी लता के समान इस विटप से लिपटना चाहती थी पर दुनिया को यह गवारा न हुआ I मै तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरी करूंगा I ' इतना कहकर वह जोर से हवा में उछला I अगले ही पल वह नदी की विशाल जलराशि में समा गया I ग्रामीण स्त्रियों के स्वर स्पष्ट उभर कर हवा में तैरे -
' चुनि चुनि फुलवा लगाई बड़ी रास I उड़ गए फुलवा रह गयी बास II '
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
ओ बी ओ के सभी मित्रो को समर्पित
Comment
अनंत जी
आपके विचार सदैव मेरे लिए विशेष प्रेरक होते है i
कोटिशः आभार i
नीलम उपाध्याय जी
आपके प्रोत्साहन का शतशः आभार i
आदरणीय गोपाल जी, रचना अंतर्मन को बेध गयी है . ऐसा कब होगा जब हमर बेटियां अपने समाज में निर्विघ्न विचरण कर कर पाएंगी.
आदरणीय गोपाल सर क्या कहूँ जिस घटना का जिक्र आपने किया है वह घटना ही ह्रदय को उद्देलित कर जाती है जब भी कुछ ऐसा पढ़ता हूँ या सुनता हूँ केवल मौन हो जाता हूँ. आज भी मौन हूँ
विजय मिश्र जी
आपके प्रोत्साहन के लिए आभार i
गीतिका जी
आपको आभार i लघु कथा या कथा होने से कोई फिर्क नहीं पड़ता i आपको कथ्य अच्छा लगा i इतना ही संतोषप्रद है i
यह कथा है अथवा लघुकथा इस बिन्दु पर गुनिजन ही कहें!
आपकी रचना मन को मथ गयी, समाज के उस पहलू से अवगत करा गयी जिसका फल निरपराध होते हुये भी भोगना पड़ता है| खैर ज़िंदगी रहती तो प्रेम से अपनाई भी जाती, लेकिन ......:(
सादर!!
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