सोच रही हूँ
लड़ूँगी प्रभु से
जब मिलूँगी पर वह भी
डर से
छुपा बैठा है , आता ही नहीं
बुलाने पर हमारे हमारी जिन्दगी को
तबाह किये बैठा है , जिस दिन भी
मिलेगा सुनाउँगी
उसे बहुत जानता हैं
वह भी शायद
इसी लिए मेरी जिन्दगी
की डोर को
ढील दिए
बैठा है ....
.
सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सविता जी
ईश्वर आपकी इच्छा पूरी करे i
आप भी खूब कसर निकाले i
मैने भी कभी लिखा था -
हारा करू हरि सो हरुआय , पै जीवन भे ललकारा करू i
अच्छी कविता है पर इस पे गौर से सोच लीजिये तो शायद आपको आपके
सवालों का जवाब मिल जाए
छुपाकर खुद को परदे में, तुझे हमने छुपा समझा ।
खता ये हो गयी हमसे , जो कुछ तेरे सिवा समझा ।
जो परदे में नही रहता , वही परदा नशीं है तू ।
antrbhaavon ka sundr prastutikaran....bahut khoob...haardik badhaaee
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति. बधाई स्वीकार करें.
dhanyvaad प्राची sis ...पहली पोस्ट से सच में खुश हैं पहले की क्यों नहीं हुई पोस्ट गुस्सा था पर अब नियम अभी फिर से धयन से पढ़ा हमने क्युकी fb पर शेयर कर चुके थे तब देखा की fb की पोस्ट भी आप नहीं लेते ...हो सकता हैं पहले की पोस्ट fb पर हो या अच्छी ना लिखी गयी हो .....फिलहाल बहुत बहुत आभार आपका दिल से
सोच रही हूँ
लड़ूँगी प्रभु से
जब मिलूँगी पर वह भी
डर से
छुपा बैठा है , आता ही नहीं........................बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | बधाई आप को
मंच पर आपकी प्रथम प्रस्तुति का स्वागत है आदरणीया सविता मिश्रा जी
ईश्वर से हर व्यक्ति अपनी समझ भर एक निजी रिश्ता सांझा करता है, कई बातें कहता है, सोचता है, कल्पनाएँ करता है..अलग अलग स्तर पर उसे महसूस करता है... ऐसी ही कुछ उलझी सुलझी सी उम्मीदों को जीती इस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बाधाई.
धन्यवाद अरुन शर्मा भैया :) :)
आदरणीया सविता जी बहुत अच्छा प्रयास किया है आपने जब हालात ऐसे बन जाते हैं तो ईश्वर से लड़ना पड़ता है बधाई आपको इस प्रयास पर.
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