है वही रास्ते
पथरीले चौड़े
पतले पक्के
घट गये रास्ते
बढ़ गयी दूरियाँ
है वही गिलास
शरबतों से भरे
शराब से खाली
नशा प्यार का
नशा नशा का
दरवाजों पे दरबार
मन की शांति
मन का तनाव
भूला प्यार
बचा टकरार
वही है रिश्ते
निभाने की होड़
दिखावट की होड़
मदद चाहत
मदद डर
प्रेम है वहीं
मन का मिलन
तन का मिलन
समर्पित हम
धन समर्पित
कल हम आज हम
वही कल आज वही
सूरज वही रौशनी वही
चॉंद वही चॉंदनी वही
मगर ना वही
तुम्हारी सभ्यता
तुम्हारे संस्कृति
ना तुम्हारे संस्कार
तुम्हारी पहचान वही
आज
लोभ,अहंकार
आधुनिकता
निर्लज्जता
और आडंबर में
बदल गया संसार
बदल गया संसार
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी की रचना
Comment
बहुत अच्छा लगता है कि आप गंभीर प्रयास के प्रति आग्रही हैं..
शुभेच्छाएं
आदरणीया वंदना जी उत्साहवर्धन हेतु प्रणाम
आदरणीय शिज्जू शंकर जी उत्साहवर्धन हेतु प्रणाम
बहुत बढ़िया आदरणीय
अच्छा प्रयास है आदरणीय अखंड गहमरी जी बधाई स्वीकार करें
आदरणीया coontee mukerji जी आपके मार्गदर्शन के हम अभिलाषी है, आप अपने विचार से हमें अगवत कराये, निखार के विषय में थोडा मार्गदर्शन करे
तुम्हारी सभ्यता
तुम्हारे संस्कृति
ना तुम्हारे संस्कार
तुम्हारी पहचान वही
आज
लोभ,अहंकार
आधुनिकता
निर्लज्जता
और आडंबर में
बदल गया संसार
बदल गया संसार...........बहुत सुंदर लिखा है अखण्ड जी,भाव विचार भी अच्छे है लेकिन थोड़ा और सँवार देंगे तो रचना निखर आएगी.यह मेरा मत है. ज़रूरी नहीं कि अमल किया जाय. शुभेच्छु
आदरणीय डा गोपाल नारायण श्रीवास्तव उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन हेतु प्रणाम
आदरणीया मीना पाटकर जी उत्साहवर्धन हेतु प्रणाम
गहमरी जी
बहुत सी बाते जो कल थी आज भी है
पर बदल गया संसार
शीर्षक विचारणीय है i आपको सतत प्रोत्साहन
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