क्यों चले आए शहर, बोलो
श्रमिक क्यों गाँव छोड़ा?
पालने की नेह डोरी,
को भुलाकर आ गए।
रेशमी ऋतुओं की लोरी,
को रुलाकर आ गए।
छान-छप्पर छोड़ आए,
गेह का दिल तोड़ आए,
सोच लो क्या पा लिया है,
और क्या सामान जोड़ा?
छोडकर पगडंडियाँ
पाषाण पथ अपना लिया।
गंध माटी भूलकर,
साँसों भरी दूषित हवा।
प्रीत सपनों से लगाकर,
पीठ अपनों को दिखाकर,
नूर जिन नयनों के थे, क्यों
नीर उनका ही निचोड़ा?
है उधर आँगन अकेला,
और तुम तन्हा इधर।
पूछती हर रहगुज़र है,
अब तुम्हें जाना किधर।
राज जिनसे मिला चोखा,
क्यों उन्हें ही दिया धोखा?
विष पिलाया विरह का,
वादों का अमृत घोल थोड़ा।
भूल बैठे बाग, अंबुआ
की झुकी वे डालियाँ।
राह तकते खेत, गेहूँ
की सुनहरी बालियाँ।
त्यागकर हल-बैल-बक्खर,
तोड़ते हो आज पत्थर,
सब्र करते तो समय का,
झेलते क्यों क्रूर कोड़ा?
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
आदरणीय राजेश जी, यह रचना कुछ हटकर अवश्य है लेकिन हम जो अपने आसपास देखते हैं वही भाव कविता में आते ही हैं। यह गीत उन के लिए नहीं है जो मजबूरी में मजदूरी करने शहर आते हैं। जो सब कुछ होते हुए भी सिर्फ शहरों की चकाचौंध से आकर्षित होकर घरों से पलायन करते हैं फिर चाहे मजदूरी ही क्यों न करनी पड़े।“प्रीत सपनों से लगाकर,पीठ अपनों को दिखाकर” यह उनके लिए ही संदेश है जो अंतिम पंक्ति में स्पष्ट है “सब्र करते तो समय का झेलते क्यों क्रूर कोडा”
मैंने कोशिश तो यही की है अब पाठक ही बता सकते हैं कि कुछ स्पष्ट कर पाई हूँ या नहीं। रचना पर आने और गौर करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
सादर
आदरणीय कल्पना दी, जहां तक मैंने आपको पढ़ा है आपकी रचना अपनी भाव दशा में काफी समृद्ध हुआ करती है पर इस प्रस्तुति में वह एकांगी क्यों हुई यह समझ नहीं पाया । श्रमिक या कोई भी यूं ही नहीं सबकुछ छोड़ आता, उसके पीछे अनेक कारण रहे होते हैं और मुझे ये चीजें कम से आपको बताने की आवश्यकता तो नहीं ही है । आप स्वयं इन पंक्तियों पर चिंतन करें
जिनसे पाया राज चोखा,
दे दिया उनको ही धोखा,
प्रीत सपनों से लगाकर,
पीठ अपनों को दिखाकर,
आदरणीय कल्पना जी , बहुत सुन्दर नवगीत के लिये आपको बधाई ॥
नमन आप को दी | सादर
वाह वाह रामानी जी
क्या बात है ? भाव नहीं, पूरी भावो की सेज है i उतना ही सुन्दर कथ्य और सन्देश i
आपकी लेखनी को प्रणाम i
प्रीत सपनों से लगाकर,
पीठ अपनों को दिखाकर,
नूर जिन नयनों के थे, क्यों
नीर उनका ही निचोड़ा। ......aa.Kalpna jee badalte smay men gaanv se plaayan ka bdaa hee maarmik aur hridy sparshee chitr aapne prastut kiya hai.....is tees men aik seekh hai.....is sundr prastuti ke liye aapko haardik naman
वाह अद्भुत नवगीत है
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