For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1 2 2     1 2 2    1 2 2    1 2 2

कहा कब कि दुनिया ये ज़न्नत नहीं है

तुम्हे पा सकें ऐसी किस्मत नहीं है //1//

मोहब्बत को ज़ाहिर करें भी तो कैसे

पिघलने की हमको इजाज़त नहीं हैं //2//

तो वादों की जानिब कदम क्यों बढ़ाएं
निभाने की जब कोई सूरत नहीं है. //3//

बहुत सब्र है चाहतों में तुम्हारी

नज़र में ज़रा भी शरारत नहीं है //4//

सुलगती हुई आस हर बुझ गयी, पर

हमें आँधियों से शिकायत नहीं है //5//

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 1494

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 2, 2014 at 8:56pm

ग़ज़ल पर हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद आ० विजेश  कुमार जी , नीरज मिश्रा जी 

Comment by Neeraj Nishchal on January 2, 2014 at 3:54pm

तारीफ हम कुछ करें भी तो कैसे ,
हमारी तो इतनी ज़ुर्रत नही है ।

Comment by M Vijish kumar on January 2, 2014 at 3:29pm

आदरणीय प्राची जी बहुत सुन्दर ग़ज़ल। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 26, 2013 at 12:25pm

इस ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी का इंतज़ार था वीनस जी..

//हर शेर तागज्जुल से लबरेज़ है//

इस टिप्पणी को पढ़ यह तो समझ आ गया था की कुछ सराहना ही है..पर क्या ? इसके बारे में आदरनीय राणा जी को ऑनलाइन देख उनसे पता किया.. :)) और तगज्जुल तखय्युल और तवज्जुन आदि ग़ज़ल के तीन महत्वपूर्ण अन्तर्निहित तत्वों के बारे में पता चला..

ग़ज़ल के प्रस्तुतीकरण पर आपकी दाद मिलना मेरे लिए बहुत मायने रखता है..इस हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद वीनस जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 26, 2013 at 11:35am

आदरणीय सौरभ जी,

ग़ज़ल की ज़मीन, वैचारिक अभिव्यक्ति और शैली आपको पसंद आये... ये मेरे लेखन के लिए उत्साहवर्धक है, संतोषप्रद है..

प्रस्तुत करने योग्य गज़लें तो बहुत कम ही लिख पाती हूँ..पर सीखने और अभ्यास के क्रम में जो ठीक ठाक सी रचना लगती है उसे ही सांझा करती हूँ.. ये छोटा सा प्रयास आपको रुचा मेरे लिए आप सम सुधिपाठकों और श्रेष्ठ रचनाकारों का यह आशीर्वाद ही महत्वपूर्ण है..

सादर धन्यवाद 

Comment by वीनस केसरी on December 26, 2013 at 1:31am

शानदार ग़ज़ल है
हर शेर तागज्जुल से लबरेज़ है
हर शेर पर ढेरों दाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 12:21am

आदरणीया प्राचीजी, इस ग़ज़ल पर इतने विलम्ब से आने के लिए क्षमा.

इस ग़ज़ल की ऊँचाई या गहराई चकित करती है. मानवीय मनोदशा की पारिस्थिक विवशता को जिस विश्वास से शब्द मिले हैं, वह श्लाघनीय तो है ही, अनुकरणीय भी है. यह अवश्य है कि आपकी ग़ज़ल की शैली निराली है जो रिवायती ग़ज़ल के अंदाज़ से एकदम से अलहदी है. लेकिन भाषा का अंतर, विचारों का अंतर, संप्रेषणीयता को कितना प्रभावित करते हैं, यह ग़ज़ल उसका उदाहरण है.
यह भी अवश्य है कि आप ग़ज़ल नहीं ही लिखती हैं. लेकिन इस रचना-निवेदन ने बहुत कुछ स्थापित किया है. बहुत खूब !
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 21, 2013 at 5:49pm

ग़ज़ल को पसंद कर सराहने और एक शेर को विशेष रूप से पसंद कर उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आ० सचिन देव जी 

Comment by Sachin Dev on December 21, 2013 at 3:25pm

तो वादों की जानिब कदम क्यों बढ़ाएं
निभाने की जब कोई सूरत नहीं है 

बहुत खूब आदरणीया.. प्राची जी, आपकी बेहतरीन गजल मैं से ये शेर बेहद पसंद आया ! आपको दिली मुबारकबाद आपकी इस बेहतरीन गजल के लिए !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 21, 2013 at 3:16pm

ग़ज़ल के चंद शेरों पर हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद आ० डॉ० आशुतोष मिश्रा जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. गिरिराज जी समर सर ग़ज़ल पर कह ही चुके हैं. बादल वाले शेर को यूँ कर के देखें... बूँद जो बारिश…"
7 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"आ. मयंक जी,आप जैसे युवाओं को ग़ज़ल कहने का प्रयास करते देख कर बहुत अच्छा लगता है.आप को अभी और समय…"
12 minutes ago
Mayank Kumar Dwivedi replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सादर प्रणाम सर जी 🙏 मैं मयंक कुमार द्विवेदी इस मंच पर बहुत पहले से जुड़ा हूँ और इस मंच से जुड़ने के…"
14 minutes ago
Ravi Shukla commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सुशील जी सुदंर कुडलिया छंद की प्रस्तुति के लिये बधाई "
33 minutes ago
Ravi Shukla commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . उल्फत
"आदरणीय सुशील जी दोहो की प्रस्तुति के लिये ेबहुत बहुत बधाई दोहो में कुछ कल संयोजन पर काम…"
39 minutes ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाई जी  ग़ज़ल पेश करने के लिये आपको बहुत बहुत बधाई । चरचा  पढने…"
59 minutes ago
Ravi Shukla commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"आदरणीय मयंक जी ग़ज़ल की पेशकश के लिये मुबारकबाद पेश है ।  जानकारी के लिये बता दूँ कि ग़ज़ल से…"
1 hour ago
Ravi Shukla replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी आपकी आपकी बातो से सहमत हूँ । आदरणीय समर साहब का मंच के प्रति लगाव निर्विवाद है ।…"
1 hour ago
Ravi Shukla replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय सौरभ जी की पोस्ट से बहुत कुछ जानने को  मिला यद्यपि बिगड़ते माहौल के बारे में सूचना मिली…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ओबीओ पटल पर मर्यादित आचरण की जो परंपरा है उसका हर सदस्य द्वारा हर हाल में पालन किया जाना चाहिए चाहे…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय सौरभ सर,इस मंच पर साहित्यिक विमर्श की परंपरा रही है जिस से मेरे जैसे कई छात्र पिछले १०-११…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सादर नमस्कार, लाइव मुशायरे के दौरान मैं उपस्थित नहीं हो सका था, किंतु यदि वहां ओ बी ओ की परम्परा के…"
2 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service