For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- पर सुगम होगा सफ़र, लगता है // --सौरभ

दिन उगे का तो पहर लगता है
यों अभी थोड़ी कसर, लगता है..

साँस लेना भी दूभर लगता है
क्या ये मौसम का असर लगता है

क्या हुआ साथ चलें या न चलें
पर सुगम होगा सफ़र, लगता है

घोर आपत्तियों के मौसम में  
मौन तक आज मुखर लगता है

जोश अंदाज़ रवां दौर लिये  
मकबरा शांत इधर लगता है  

लोग दीवार उठायेंगे ही    
छत बना यार अगर लगता है

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर
घर तभी प्यार का घर लगता है

बह रही शांत नदी के मन में  
एक उल्टी है लहर लगता है

सांत्वनाएँ जो मिलीं कुछ यों मिलीं
अब निवेदन से भी डर लगता है
*************

-सौरभ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 923

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Saarthi Baidyanath on January 6, 2014 at 10:39pm

आदरणीय बहुत ही प्रभावशील ग़ज़ल हुई है ! आपके अशआर कहने का तरीका ..बहुत अच्छा लगा ! इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें ..

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर 
घर तभी प्यार का घर लगता है .....लाजवाब ..बस लाजवाब 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 6, 2014 at 10:15pm

आदरणीय सौरभ भाई ,

नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ खूबसूरत शेरों की ढेरों बधाई।

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 7:32pm

आदरणीय सौरभ सर लाजवाब अशआर से सुसज्जित ग़ज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई आपकी रचनाओं की हमेशा प्रतीक्षा रहती है।

Comment by coontee mukerji on January 6, 2014 at 5:28pm

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर
घर तभी प्यार का घर लगता है .....बहुत सही और खुशनुमा महौल बना रहता है....अच्छी गज़ल के लिये अपको हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ जी, सादर.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2014 at 5:09pm

आदरणीय,,,.नमन,,,,,सभी अशआर एक से बढ़कर एक हुये,,सच तो यह है कि एक का उल्लेख करूं तो दूसरा शेर ख़फ़ा हो जायेगा,,, गज़ब के भाव,,,,और संदेश देती हुई इस गज़ल के लिये बहुत बहुत बधाई,,,,,,,,आपको,,,,,,

Comment by Abhinav Arun on January 6, 2014 at 3:59pm

हर शेर लाजवाब अग्रज श्री ..भाव भरे ... मधुर विमर्श को प्रेरित करती ग़ज़ल ..कामयाब ..ये अश्'आर ख़ास तौर पे बार बार पढ़ आनंदित हूँ---

 

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर
घर तभी प्यार का घर लगता है

 

बह रही शांत नदी के मन में 
एक उल्टी है लहर लगता है
     ..हार्दिक नमन ! नूतन वर्ष आपके स्नेह - आशीष की छाँव मे मेरे शब्दों को और सामर्थ्य दे यही कामना है !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 1:39pm

आदरणीया सरिताजी, आपकी संवेदनशीलता ने इस ग़ज़ल के अश’आर को मायने दिये हैं. एक कोशिश को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 1:13pm

आदरणीय गिरिराजभाई, आपने ग़ज़ल को अनुमोदित कर इसे बहुत ही सम्मान दिया है. हार्दिक आभार.. .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 1:12pm

आदरणीया वन्दनाजी, इस ग़ज़ल को सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Sarita Bhatia on January 6, 2014 at 9:46am

आदरणीय सौरभ sir लाज़वाब गजल 

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर 
घर तभी प्यार का घर लगता है 

बह रही शांत नदी के मन में  
एक उल्टी है लहर लगता है 

सांत्वनाएँ जो मिलीं कुछ यों मिलीं 
अब निवेदन से भी डर लगता है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service